Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 150
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१ दुनियामां मोहराज्य तमासो, मुझे खत्ता खाशो; आतमराज्यमा ज्ञाने प्रवेशो, मोही थै पस्ताशो. आतम०७ परमेश्वरमां मनने धारो, दुर्गुणव्यसन विनाशो; सघळा सद्गुण घट प्रगटावो, काममा करशो न वासो. आतम० ८ सात्विकभोजन जळ वापरशो, भोगोथकी विरमाशो; हिंसा जूटुं चोरी मैथुन, त्याग करी शुद्ध थाशो. आतम० ९ शुद्धस्वदेशी गुणपर्यायो, ओळखीने ज विकासो: देवगुरुने धर्मनो दिलमां, पूर्ण धरो विश्वासो. आतम०१० अहिंसा सत्यसंयमतपजप, ज्ञानभक्तिए विलासो; बुद्धिसागरशुद्धस्वदेशी, आपोआप प्रकाश्यो. आतम० ११ आतम ! तुं नहीं जडनो भोखारी, ___ आशावरी. आतम !!! तुं नहीं जडनो भीखारी, शहेनशाह तुं जगनो स्वामी; तुज पदवी लें संभारी.. ...............आतम० दर्शन ज्ञानचारित्रने वीर्य ज, अनंतसुख भंडारी अनंतसुखनो लेश नहीं कंइ, निश्चय कर निर्धारी. आतम० १ सुख अनंतु छे निजघरमां, परघर दुःख अपारी; ममता अहंता जडमां करे केम ? भ्रांतिथी दुःख भारी. आतम० २ जडवस्तुथी सुखदुःख कल्पना, करी निजरूप विसारी; आतमना उपयोगे छे सुख, क्या करे जडनी यारी.. आतम० ३ भीखनुं काम सकळथी नीचुं, इन्द्रने चक्री भीखारी; पुद्गलभीखथी तृप्ति न शांति, मोहे थाती खुवारी. आतम०४ वर्णगंधरसस्पर्शनी भीखे, तृष्णाए दुःख भारी; मासवर्ष समता मगर, इस्लामलगारी. मातम ५ For Private And Personal Use Only

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