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आतम० ६
आतम०७
१२२ मागण पेठे माग न आतम !! ! मागणवृत्ति नठारी; रत्ननुं मैदिर झुपडी बेमां, समभावे सुखक्यारी. अहंममता आशारहित मुनि, अनंत सुख अधिकारी; तनमनधनमूर्छा उतरतां, जीवंतां मुक्ति सारी. महीजलअग्निवायुने नभथी, तुं मोटो निर्धारी; ताहरी तले कोइ न आवे, तनुदेवळ प्रभु भारी. शुद्गलोंठ अनंती वेळा, खाधी पीधी अपारी; तेथी वृप्ति लेश थइ नहीं, समज समज सुखकारी, अनंत ज्ञानानन्दनी ऋद्धि, प्रभुता गणीले प्यारी; नामरूपनो मोह त्यजीदे, घटमां प्रभुता लें भाळी. सर्वपुद्गलमा निःसंग रहेवू, आतमरूप विचारी; बुद्धिसागर आतमराजा, विश्वप्रभु बलिहारी.
आतम०८
आतम० ९
आतम० १०
आतम० ११
कुर्बानी ने होम पशुवध संबंधी उपदेश.
ओधवजी सन्देशो कहेशो श्यामने. ॥ अल्लाने खावापीवान नहीं कशु ? नित्य निरंजन नूर छे अपरंपारजो; पशु मार्याथी तेना नामे ते कदी, खुश थतो नहि नाखुश नहि तलमारजो पक्षपात त्यागीने सत्य विचारशो.... ........१ अल्लाने पशुभक्षणनी इच्छा नथी, खावु होय तो स्वयंग्रहीने खायजो ए, तो ममजाय नहीं मतपक्षमां,
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