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पशुए शुं ? कीधो प्रभुनो अन्यायजो; सत्यबुद्धिथी साचुं शुद्ध विचारजो .... ....२ पशुपंखीने प्रभुनानामे मारतां, प्रभुनानामे थतो घणो अन्यायजो; प्रभु पण पोताना जेवो खातो गणो, तेमां मननी इच्छा हुकम जणायजो, जेवा पोते तेवा प्रभुने शुं? गणो.... प्रभुने माताने पशुओ खावां नहीं, मांस रक्तने भक्षे नहि कदि देवजो; मांसरक्तने खानारा देवो नहीं, राक्षस पापीने खावानी टेवजोः । होमयज्ञमां पशुपंखी नहीं होमशो.... माता मेलडी नामे पशुओ नहीं हणो, देवना नामे मनुष्यनां पाखंड जो; खावे पीवे जेवं ते प्रभुने घरे, मनुष्यनां कल्पित एवां बहु बंडजो पशुना स्थाने याज्ञिको केम नहीं मरे........ ..... मझ नयी परमेश्वर के पशुने इणे, हणनारानी उपर करता रहेमजो; पशुने मारे स्वर्ग न पोताने भळे, अन्य मरे ने स्वर्ग मळे निज केमजो; रागद्वेष निवारी सत्य विचारजो.... रामरोष कामादियुत मन छे पशु, एवा पशुनी करो कुर्बानी होमजो; व्हेम करीने प्रभुना नामे नहीं हणो,
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