Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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आतम! आताशुद्धिने धारो.
(आत्तशुद्धि. ) सोरठ. आतम ! आतमशुद्धिने धारो, मनवाणीतनुथी तजी हिंसा घरो अहिंसाआधारो.
.......आतम० देवगुरुने धर्मनी श्रद्धा, समकितना ज विचारो; मिथ्याबुद्धिप्रवृत्ति त्यजतां, टळता मनना विकारो. आतम०१ सेवाभक्ति ज्ञान उपासना, कर्मयोग व्यवह.रो; वैर विरोध न दिलमा रहेता, भुर्शन अवधारो. आतम०२ मैत्रीप्रमोदने मध्यस्थ करुणा, भावना भायो चारो; निर्दोष जळभोजनने लेता, साविक वृत्ति सुधारो. आतम० ३ साविक ज्ञानने शुद्धतानना, शास्त्रो भणी मोह मारो सर्ववासना वीजो बाळो, अंतर्मा मन काळो. आतम०४ परने पीडा करो न करावो, अन्यजीवो न संहारो मनवचकायथी परजीवोने, दुःखको नहि गुणधारो. आतम० ५ जूठं चोरी मैथुन दारु,- व्यभिचार मांस निवारो; संयम तप सद्वर्तन धारो, टालो कपाय प्रचारो. आतम०६ धर्मी अधर्मी विधर्मी उपर, राग रोप खेद टाळो; भावीभावे सुखदुःख प्रगटे, समभावे ते निहाळो. . आतम० ७ उपसर्गो परिषह सहु संकटो, प्रगटे हिम्मत नहीं हारो; सुवर्णवत् कसाओ विवेके, आतम गणी ल्यो प्यारो. आतम०८ सर्वजीवो निज आतम सरवा, गणवा ए धर्म सारो; दुर्गुण दुव्यसनो झट टाळो, शुद्धस्वरूप संभारो. आतम०९ आगम वेद पुराण कुरानने, राइस मार उद्धारो दोषो टळो सद्गुण ध रो, दान दया उसका रो. आतम० १० चावं ने सहेवू साचुं व हेवू, कम जीती प्रभु भाळो; बुद्धिसागर कहेणी रहेगा, सरखी सफल अवतारो. आतम० ११
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