Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 145
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपराधी दुर्जन शत्रु , शक्ति छतां भलु करशो; समताभावे आतमजीवन, धारी शिवपुर वरशो.. प्रभुमहावीरनां शुभवचनामृत, हितशिक्षा आचरशो; बुद्धिसागरप्रभुमयजीवन, मकट चिदानंद वरशो. चतुर० ११ चतुर० १२ ॥ हमकुं जानत है कोन ज्ञानी. ॥ __ आशावरी. अवधू क्या मागुंगुणहीना. ए राग. हमकुं जानत है कोउ ज्ञानी, हमकुं न जानत पापी अज्ञानी जानत नहि अभिमानी.... .... .... ....हमकुं० इमकुं जानत अबधृत योगी, कोउ अनुभवतानी; शुद्धसनेही त्यागी जानत, लेत है भक्त पिछानी. समभावीजन हम्कुं जानतं, जानते हैं को ध्यानी हमकुं जो जाने उसके घरमें, झळके हमारी निशानी. हमकुं० २ हमकुं जो जानत उसके दिल्मे, उभरात आनंदवाणी, बुद्धिसागर समजे सो पावे, आनंदवनकी खानि. हमकुं. ३ आतम तुंछे ज्ञाननो दरियो. आशावरी. आतम तुंछे ज्ञाननो दरियो, अस्तिनास्तिगुणपर्यायजलधि झेयतरंगे भरियो.... .... .... ....आतम. शक्ति अनंती समये समये, सत्साए नित्य परियो वण्यकालमा एकस्वरूप तुं, नहिं मरियो अवतरियो. आतम०१ अनंत सुखसागर गुरुदेव तुं, गुरुकृपाए मठियो बुद्धिसागर ब्रह्मस्वरूपमा, ब्रह्मस्वरूपे भलियो. आतम०२ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198