Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 10
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 144
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुरजन !!! हितशिक्षा दिल धरशो. आशावरी. चतुरनर !!! हितशिक्षा दिल धरशो, संतन नोनी संगति करतां; नकी पोते सुधरशो.... .... .... ....चतुर० कुटुंबकोममां संपीने रहेशो, फाटफूट नहीं करशो धर्मने राज्यनो द्रोह न करशो, कार्य दानां आदरशो. चतुर० १ मातपिता वृद्ध गुरुजन सेवा, करतां न पाछः पडशो; दारुमांसथकी दूर रहेशो, मतपंथभेदे न लडशो. चतुर० २ प्राणांते पण हिंसा न करशो, जूटुं न क्यारे करशो; जूटुं बोलो नहीं चोरी न करशो, व्यभिचार परिहरशो. चतुर० ३ सात्विक आहार पानने वस्त्रे, मनतनशुद्धि आचरशो; निर्भय निर्दोष स्वातंत्र्यजीवन, धरीने विश्व विचरशो. चतुर०४ परोपकारे अर्पाइ जाशो, पापकर्म परिहरशो; निष्कामे पुण्यकार्यों करशो, भूलदोष परिहरशो. चतुर०५ मनवाणी कायथी दुष्कृत. निंदो' पश्चात्तापने करशो; मनवाणीतनुव्यवहार शुद्धि, करीने संयम दरशो. चतुर०६ प्रभु मेळववा तप जप दानने, निर्दभ व्रत आचरशो; सद्गुरुसेवा भक्तिमा स्वार्पण, करतां प्रभुपद परशो. चतुर. ७ हळमळी शुद्धप्रेमथी वर्गों, पाप करतां डरशा; मनथी कोर्नु बूरु न इच्छो, जूठी साक्षी न भरशो. चतुर०८ दुर्गुण तजशो सद्गुण लेशो, न्यायनी तथी विचरशो; दुष्टव्यसनथी रे रहेशो, नीतिए पेटने भरशो. चतुर०९ दुःख संकट पडतां प्राणांते, अशीति पाप न करशो विपचिमांही प्रभु न विसरशो, क्षण क्षण माने समरशो. चतुर०१० कर For Private And Personal Use Only

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