Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa
Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 12
________________ ---- -- - परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुंथु सागरजी महाराज का एक विशाल संघ है । वर्ष १९८७ का वर्षायोग अकलज (महाराष्ट्र) में पुर्ण करके आपका संघ नगर-नगर ओर ग्राम-ग्राम में धर्म प्रभावना करता हुन्या दिनांक १५/२/८८ को तीर्थराज श्री सम्मेद शिखरजी में पहुंचा। इस क्षेत्र की बंदना कर अष्टान्हिका पर्व के बाद चम्पापुर, राजगृही, पावापुर आदि क्षत्रों की यात्रा करने हेतु दिनांक ५/३,८८ को संघ ने बिहार कर दिया है। ___ गराधराचार्य महाराज के संघ में इस समय कुल ३६ पिच्छी है जिसमें उन्हीं के दीक्षित २७ मुनिराज, ५ प्रायिका माताजी, ४ क्षुल्लक महाराज व ३ क्षुल्लिका माताजी हैं । अापका संप मात्र विशाल ही नहीं हैं बल्कि मनियों की संख्या भारतवर्ष में विद्यमान सभी संघों से सर्वाधिक है जो वास्तव में बहुत ही गौरव व प्रसन्नता की बात है। संघ संचालन हेतु कोई ब्रह्मचारिणी भी नियुक्त नहीं है । सभी व्यवस्था श्रावकों पर निर्भर है। यह बात भी विशेष उल्लेखनीय एवं प्रशंसनीय है जो अन्यत्र देखने में बहुत कम मिलती है। संघ पूर्ण पागम के अनुकूल विचरण कर धर्म प्रभावना कर रहा है । संघ में अधिकांश युवा मुनि हैं । सभी सदैव अध्ययन चितन मनन में लगे रहते हैं । मुनिगण कई भाषाओं के ज्ञाता हैं और विभिन्न भाषाओं में प्रवचन भी करते हैं । इस प्रकार गणधराचार्य महाराज ने इतने विशाल संघ का संचालन करते हये, त्याग तपस्या में सदैव लीन रहते हुये समय निकाल कर बहुत ही कठिन परिश्रम करके इम प्रकार के महत्वपूर्ण ग्रंथ की टीका कर प्रकाशन करवाया है। वास्तव में यह एक महत्वपूर्ण कार्य किया है। इसके लिये हम उनके चरणों में कोटि-कोटि चार नमोस्तु अपित करते है। गणधराचार्य महाराज आर्ष परम्परा के हेढ़ स्तम्भ हैं। समता वात्सल्य, निर्ग्रन्थता आपके विशेष गुण हैं । जो भी आपके एक बार दर्शन प्राप्त कर लेता है वही अपने आपको धन्य मानता है। गणधराचार्य महाराज के गुणों के बारे में जितना सिखा जावे थोड़ा है। अागे कुछ लिखना मेरे लिये उसी प्रकार अनुपयुक्त होगा जैसे सूर्य को दीपक दिखाना। वास्तव में गराधराचार्य महाराज त्याग तपस्या को साक्षात् मूति हैं । आदरणीय प्रोफेसर अक्षयकुमारजी जैन इन्दौर का भी आभार व्यक्त करते हुये बहुत-बहुत धन्यवाद देना हूं कि आपने बहुत ही सुन्दर एवं विद्वत्ता पूर्ण शब्दों में ग्रंथराज की प्रस्तावना लिखने की कृपा की है । आप बहुत ही उच्च कोट के विद्वान है जिसका अन्दाज आप स्वयं ही ग्रंथ में प्रकाशित प्रस्तावना को पढ़कर लगा सकते हैं। पाशा है भविष्य में भी आपका आशीर्वाद, सहयोग, मार्ग दर्शन हमें प्राप्त होता रहेगा। आप वारणी सिद्ध की उपाधि से विभूषित्त हैं । ग्रंथ में प्रकाशित सभी यंत्रों के डिजाइन एवं प्रावरण पृष्ठ का डिजाइन हमारे याटिस्ट मास्टर पुरुषोत्तम जी शर्मा ने बहुत ही कठिन परिश्रम से बनाकर हमें सहयोग - - -

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