Book Title: Bhagwati Sutra Part 10
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 687
________________ ६६४ भगवतीसूत्रे यति-धम्नलिकाएणं भंते ! केवइएहिं धमाथिकायप्पए सेहिं पुढे ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! धर्मास्तिकायः खल कियद्भिः धर्मास्तिकायप्रदेशः स्पृष्टो भवति ? भगवानाह- नत्यि एकेंग वि' हे गौतम ! धर्मास्तिकायो नास्ति एकेनापि धर्मास्तिकायप्रदेशेन सृष्ट', सकलस्यैव धर्मास्तिकायस्य प्रनितत्वेन तद्व्यतिरिक्तस्य च धर्मास्तिकायमदेशस्याभावात् , तथा च नेदं भवति यद्-एकेनापि धर्मास्तिकायमदेशेन असौ धर्मास्तिकायः स्पृष्टो भाति । गौतमः पृच्छति'केवडरहिं अधम्मत्यिकायप्पएसेहि पुढे ?' हे भदन्त ! कियदभिः अधर्मास्तिकायमदेशैः धर्मास्किायः स्पृष्टो भानि ? भगवानाह-' असंखेज्जेहिं ' हे गौतम ! असंख्येयैः अधर्मास्तिकायप्रदेशः धर्मास्तिकायः स्पृष्टो भवति, धर्मास्तिकायप्रदेशानन्तरमेव अधर्मास्तिकायसम्बन्धिनामसंख्येयानामपि प्रदेशानां व्यवस्थितप्रभु से ऐसा पूछा है-'धम्मत्थिकारण भंते! केवइएहिं धम्मत्थिकायपएसेहि पुढे हे भदन्त ! धर्मास्तिकाय द्रव्य धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'नस्थि एकेण वि' हे गौतम ! धर्मास्तिकाय द्रव्य धर्मास्तिकाय के एक भी प्रदेश से स्पृष्ट नहीं होता है। इसलिये उससे भिन्न कोई और धर्मास्तिकाय प्रदेशका सद्भाव बचता नहीं है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवाएहिं अहम्पत्थि कायपएसेहिं पुढे' हे अदन्त ! धर्मास्तिकाय भितने अधर्मास्तिकायप्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'असंखेज्जेक्षित हे गौतम ! धर्मास्तिकाबद्रव्य असंख्यात अधर्मास्तिकायप्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होता है। क्योंकि धर्मास्तिकाय के प्रदेशों के अनन्तर ही अध मास्तिकाय संबंधी असंख्यातप्रदेश व्यवस्थित हैं । अब गौतम ऐसा जीतम स्वामीन। प्र-“धम्मत्थिकाए भंते ! केवइएदि धम्मथिकायपए. से पटे " 0 अगषन् । यस्ताय द्रव्य मास्तियन 32 प्र! દ્વારા પૃષ્ટ થાય છે? महावीर प्रभुना उत्त२-" नथि एकेण वि" गौतम ! यास्तिय દ્રવ્ય ધર્માસ્તિકાયના એક પણ પ્રદેશ વડે સ્પષ્ટ થતું નથી, કારણ કે સમસ્ત ધર્માસ્તિકાય વિષે પ્રશ્ન પૂછવામાં આવ્યું છે તે કારણે તેનાથી ભિન્ન એવા બીજા કેઈપ ધર્માસ્તિકાય પ્રદેશને સહુ ભાવ જ સંભવી શકતું નથી गौतम स्वाभानी प्रश-" केवइएहि अहम्मस्थि कायपएश्चेहि पुद्रे ?" है હે ભગવદ્ 'ધમસ્તિકાય દ્રવ્ય કેટલા અધર્માસ્તિકાય પ્રદેશો વડેસ્કૃષ્ટ થાય છે? महावीर प्रभुना उत्तर-असंखेज्जेहि " गौतम ! घमास्ताय द्र०५ અસખ્યાત અધર્માસ્તિકાય પ્રદેશ વડે ધૃષ્ટ થાય છે, કારણ કે ધર્માસ્તિકાયના પ્રદેશની અનન્તર જ અધર્માસ્તિકાયના અસંખ્યાત પ્રદેશે રહેલા હોય છે,

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