Book Title: Bhagwati Sutra Part 10
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 685
________________ દહેર भगवती सूत्रे , भ षट्सु दिक्षु इत्येवं रीत्या सप्तेति । गौतमः पृच्छति' के वइएहि श्रहमस्थिकायध्वएसेहिं पुढे : ' हे भदन्त ! कियद्भिः अधर्मास्तिकायमदेः एकः अद्धासमयः भति ? - ' एवं चेत्र ' हे गौतम! एवमेव पूर्वोक्तरीत्यैव, सप्तभिः अधर्मास्तिकाय१देशः एकः अद्धासमयः स्पृष्टो भवति, उक्तयुक्तेः 'एवं आगासत्य काय पए सेहि त्रि' एवं - तथैव पूर्वोक्तरीत्यैव आकाशास्तिकायम देशैरवि समिरेव एकः अदाममपः स्पृष्टो भवति । गौतमः पृच्छति - ' केवइएहिं जीवतिथकागपए सेर्हि पुढे ? ' हे भदन्त ! कियद्भिः जीवास्तिकाय प्रदेशः एकः अद्धा समयः स्पृष्टो भवति ? भगवानाह - अनंतेहिं एवं जाव अद्धासमएहिं ' हे गौतम ! अनन्तैः जीवास्तिकाय प्रदेशः एकः अद्धाममयः स्पृष्टो भवति, एवं में हैं इस रीति से सात हो जाते हैं । अथ गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'के वह एहि अहम्मत्यिकागपएसेहिं पुढे' हे भदन्त । कितने अव मनिका प्रदेशों द्वारा एक अद्धासमय पृष्ट होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवंचेत्र' हे गौतम ! सान अधर्मास्ति यप्रदेशों द्वारा एक श्रद्धासमय स्पृष्ट होता है-युक्ति इस विषय में कही जा चुकी है। 'एवं आगासत्थिकायप एसेहि वि' इसी प्रकार सान ही आकाशास्तिका प्रदेशों द्वारा एक अद्धालमय स्पृष्ट होता है । अय गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'केचइएहिं जीवत्थिकापसेहिं पुढे' हे भदन्त ! किनने जीवास्तिका प्रदेशों द्वारा एक अद्वासमय स्पृष्ट होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'अनंतेहिं एवं जाव अद्धासमएहि' हे गौनम ! अनन्त जीवास्तिका प्रदेशों द्वारा एक अहासमय स्पृष्ट होता है । इसी प्रकार આ રીતે સાત છે, ધર્માસ્તિકાયના ખીજા ૬ પ્રદેશા તેની છ દિશાઓમાં છે, ધર્માસ્તિકાયપ્રદેશ વડે પના થાય છે. गौतम स्वामीने प्रश्न -" केवइएहि अहम्मत्थिकायपरसेहि पुट्ठे ?" ભગવન્ ! એક અદ્ધાસમય કેટલા અધર્માસ્તિકાયના પ્રદેશે વડે પૃષ્ટ થાય છે ? भडावीर अलुन! उत्तर- " एवं चैव " हे गौतम ! सात अधर्मास्तिप्रायना પ્રદેશ વડે એક અમ્હાસમય પૃષ્ટ થાય છે. તેનું સ્પષ્ટીકરણુ પણ ઉપર भुभ्ण समन्वु, " एवं आगासत्थिकायपरसेहिं वि" मेन प्रभाछे सात આકાશાસ્તિકાયપ્રદેશે વડે એક અદ્ધાસમય પૃષ્ટ થાય છે. गौतम स्वामीना प्रश्न - " केवइएहि जोवत्थिकायपएसेहिं पुढे ?" हे ल વન્ ! એક અદ્ધાસમય કેટલા છત્રાસ્તિકાયપ્રદેશ વડે પૃષ્ટ થાય છે? महावीर प्रभुना उत्तर- " अणेहि, एवं जाव अद्धासमएहि " मेऽ અદ્ધાસમય અનંત જીવાસ્તિકાયપ્રદેશે વડે પૃષ્ટ થાય છે, એજ પ્રમાણે

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