Book Title: Bhagwati Sutra Part 10
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 733
________________ ७१० भगवतीसूत्र आह-'भगव ! णो इणढे सम?' हे भगवन् ! नायमर्थः समर्थः नै भवितुमर्हति, भगवानाह -'अणंना पुण तत्थ जीवा ओगाढा' किन्तु हे गौतम ! अनन्ताः पुनस्तत्र सहस्रप्रदीपलेश्यासु-पदीपपकाशेषु जीवा अवगाढा भवन्ति, प्रकृनमुपसंहरबाह-'से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चह-जाव ओगाहा' हे गौतम ! तत् तेनार्थेन, एवमुच्यते यत्-त्वम्-एतस्मिन् धर्मास्तिकायादित्रये नो कश्चित् पुरुषः आसितुं वा, स्थातुवा, निपतु वा, त्वमर्तयितुवा शक्नुयात् किन्तु अनन्ताः पुनस्तत्र जीवा अवगाढा भवन्ति ।।मू० १२॥ बहुसमदार वाव्यताप्रस्तावः मूलम्-कहि णं भंते! लोए बहुममे? कहिणं भंते! लोए सव्वविग्गहिए पण्णते? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेडिल्लेसु खुड्डागपयरेसु, एत्थ णं लोए बहुममे, एत्थ णं सकता है ? इस पर गौतम कहते हैं-'भगवं! णो इणढे सम?' हे भदन्त ! यह अर्थ समय नहीं है-अर्थात् ऐसा नहीं हो सकता है। तब प्रभु कहते है 'अगंता 'पुण तस्य ओगाढा' परन्तु वहां अनन्त जीव अवगाढ होते हैं । 'से तेणठेगं गोयना! एवं बुकचा जाच ओगादा' इम कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है। इस धर्मास्तिकामादिकत्रिक में कोई पुरुष न बैठ सकता है, न उठ सकता है, न खड़ा रह सकता है, और न करवट बदल सकता है। क्योंकि ये तीनों ही द्रव्य अमूर्त हैं । पर ऐसा होने पर भी अनन्त जीव इनमें अवगाढ होते हैं ॥ १२॥ ॥ इति अम्तिकायप्रदेशनिषदनद्वार वक्तव्यता॥ गौतम स्वामीना उत्तर-" भगव ! णो इणडे सम?" उ सन् ! से सनी शतु नथी. त्यारे महावीर सु छ-"अणता पुण तत्थ ओगाढा" ५२न्तु त्यो मानत डाय छ " से तेणट्रेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव ओगाढा " गौतम! a णे में मेयु छ । मा ધતિકાય આદિ ત્રણ દ્રવ્યમાં કેઇ પણ પુરુષ બેસી શકતે થી ઊઠી શકતે નથી, ઊભું રહી શકતું નથી અને પડખું બદલી શકતું નથી કારણ કે તે ત્રણે દ્રવ્ય અમૂર્ત છે એવું હોવા છતાં પણ અનંત જ તેમાં અવગાઢ (સ્થિત) છે સૂ૦૧૨ા.

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