Book Title: Bhagwati Sutra Part 10
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 738
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० ४ सू० १४ लोकसंस्थानद्वारनिरूपणम् ७१५ सुमतिष्ठिक संस्थितः-सुपतिष्ठितम् अधोमुखीकृताधः स्थापित शरावो परि उर्वमुख स्थापितशरावा , तदिवसंस्थितमाकारो यस्य स तथाविधो लोकः प्रज्ञप्तः, 'हेटावित्थिन्ने, मज्झे जहा सतमसए पढमुद्दे से जात्र अंतं करेंति' अधस्तात विस्तीर्णः विशाल: मध्ये संक्षिप्तः इत्यादिरीत्या यथा सप्तमशतके प्रथमोद्देशके प्रतिपादित स्तथैवात्रापि प्रतिपादनीयः, तत्पतिपादनावधिमाह-यावन्-सिध्यन्ति, बुध्यन्ते, मुच्यन्ते, सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति इत्येतत्पर्यन्तमित्यर्थः । अथाल्पबहुत्वं गौतमः पृच्छति-' एयस्स णं भंते ! अहे लोगस्त तिरियलोगस्स, उडलोगस्स य कयरे लोक का आकार सुप्रतिष्ठक के आकार जैसा कहा गया है। नीचे मुख करके रखे शराव के ऊपर ऊर्वमुख करके रखे गये शराव का जैसा आकार होता है-उसका नाम सुप्रतिष्ठक है। ऐसा ही आकार लोक का कहा गया है । 'हेही वित्थिन्ने, मज्झे जहा सत्तमसए पढ़मुद्देसे जाव अंतं करेंति' इस आकार में लोक नीचे विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त है, इत्यादि रीति से जैसा सप्तमशतक के प्रथम उद्देशक में प्रतिपादित किया गया है। उसी प्रकार से वह यहां पर भी प्रतिपादन करना चाहिये। यह प्रतिपादन वहां से यहां कहाँ तक का करना चाहिये । इसके लिये अवधिदिखाने के लिये सूत्रकार कहते हैं'जाव अंतं करोति' इस पाठ तक का प्रकरण लेकर यहां प्रतिपादन करना चाहिये । यहां यावत् शब्द से 'सिध्यन्ति, वुध्यन्ते, मुच्यन्ते, सर्वदुःखानाम्' इन पदों का संग्रह किया गया है। अब अल्प बहुत्व के विषय में गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'एयस्सणं भंते । पण्णत्ते' सोनी भार सुप्रतिष्ठिना भा१२ व छ. धारावा શકેરા પર બીજા શકરાને ઉર્વ મુખ રાખીને ગોઠવવાથી જે આકાર થાય છે, તેવા આકારને સુપ્રતિષ્ઠિક કહે છે એ જ લેકને આકાર કહ્યો છે. " हेद्वा विस्थिन्ने, मझे जहा सत्तमसर पढमुदेसे जाव अंग करे'ति" मा भार આ પ્રકારનો છે-નીચે લેક વિસ્તીર્ણ છે, મધ્યમાં સંક્ષિસ છે, ઈત્યાદિ જેવું કથન સાતમાં શતકના પહેલા ઉદેશામાં પ્રતિપાદિત કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણે અહીં પણ તેનું પ્રતિપાદન થવું જોઈએ તે પ્રતિપાદન કયાં સુધી ४२वू नयेते हुवे RATH मावे छे-"जाव अंतं करें वि" मा સૂત્રપાઠ પર્વતના કથનનું અહીં પ્રતિપાદન કરવું જોઈએ અહીં “યાવત્ ” ५४ 43 "सिध्यन्ति, वुध्यन्ते, मुच्यन्ते, सर्वदुःखानाम् " l पानी સંગ્રહ કરવામાં આવ્યું છે.

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