Book Title: Bhagwati Sutra Part 10
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 702
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० ४ सू० १० अवगाहनाद्वारनिरूपण ६७९ उक्तयुक्तः । गौतमः पृच्छति- केवइया अहम्मत्थिकायप्पएसा ओगाढा ?' तत्र कियन्तोऽधर्मास्तिकायप्रदेशा अवगाढा भवन्ति ? भगवानाह-'नथि एको वि हे गौतम ! तत्र एकोऽपि अधर्मास्विकायप्रदेशोऽवगाढो नास्ति, स्वस्थाने स्वप्रदेशान्तरस्यावगाहाभावात् 'सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स' शेष तत्र आकाशास्निकायप्रदेशावगाहादिकं यथा धर्मास्तिकायस्य प्रतिपादित तथैव अध___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवड्या अहम्मस्थिकाय. पाएसा ओगाढा' हे प्रदन्त ! जहां पर एक अधर्मास्तिकाय प्रदेश अवगाढ है-वहां पर अधर्मास्तिकाय के और कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'नथि एको वि' हे गौतम! वहां पर एक. भी अधर्मास्तिकाय प्रदेश अवगाढ नहीं है। क्योंकि अपने अवगाह स्थान में अपने ही अन्य प्रदेश के अवगाह होने का अभाव रहता है। 'सेर्स जहा धम्मस्थिकायस्स' जैसा धर्मास्तिकाय के प्रकरण में आकाशास्तिकाय के प्रदेश के अवगाहादि का कथन किया गया है वैसा ही शेष कथन यहां अधर्मास्तिकाय के विषय में भी जानना चाहिये। अर्थात् जहां अधर्मास्तिकाय का एकपदेश अवगाढ है वहां पर आकाशास्तिकाय का भी एकप्रदेश अवगाढ है, जहां अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगा है, वहां जीवास्तिकाय के भी अनन्त प्रदेश अवगाढ हैं, जहां अधर्मास्तिकाय का एकप्रदेश अचमाह है यहां पुद्गलास्तिकाय के भी अनन्तप्रदेश अवगाढ हैं, तथा जहां पर अधर्मास्तिकाय का एक गौतम स्वाभान प्रश्न- 'केवइया अहम्मस्थिकायप्पएसा अवगाढा?" ભગવાન ! જ્યાં એક અધતિકાય પ્રદેશ અવગાઢ હોય છે, તે સ્થાન પર કેટલા અધમસ્તિકાયના બીજ પ્રદેશે અવગાઢ હોય છે ? भावी२ प्रभुना उत्तर-" नथि एक वि" है गौतम! ते स्थान ५२ બીજે એક પણ અપમસ્તિકાયપ્રદેશ અવગાઢ હેતે નથી, કારણ કે પિતાના જ અવગાહસ્થાનમાં પોતાના જ અન્ય પ્રદેશની અવગાહના થવાને અભાવ २९ छ "सेसं जहा धम्मस्थिकायस्स" यास्तियन ४२४मा सासશાસ્તિકાયના પ્રદેશના અલગ હાદિનું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ બાકીનું કથન અહીં અધમક્તિકાયના વિષયમાં પણ સમજવું એટલે કે જ્યાં અધમસ્તિકાયને એક પ્રદેશ અવગાઢ છે, ત્યાં આકાશાસ્તિકાયને પણ એક પ્રદેશ અવગાઢ હોય છે જ્યાં અધર્માસ્તિકાયને એક પ્રદેશ અવગાઢ છે. ત્યાં જીવાસ્તિકાયના પણ અનંત પ્રદેશે અવગાઢ છે, જ્યાં અધમસ્તિકાયને એક પ્રદેશ અવગાઢ છે ત્યાં પુદ્ગલાસ્તિકાયના પણ અનત પ્રદેશે અવગઢ

Loading...

Page Navigation
1 ... 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743