Book Title: Bhagwati Sutra Part 10
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 703
________________ ६८० भगवतीसूत्र मास्तिकायस्यापि प्रतिपत्तव्यम् । गौतमः पृच्छति-'जस्थ णं भंते ! एगे आगा. सस्थिकायपए से ओगाढे तस्थ केवइया धम्मत्थिकायापण्सा ओगाहा ?' हे भदन्त ! यत्र खलु एक भाकाशास्तिकायप्रदेश अवगाढ स्तत्र तियन्तो धर्मास्तिकायपदेशाः अवगाहा भवन्ति ? भगवानाह-'सिय ओगाढा, सिय नो ओगाहा जइ ओगाढा एको' हे गौतम ! तत्र धर्मास्तिकायमदेशाः स्यात्-कदाचित् , अब. गाढा भान्ति, स्यात् - कदाचित् नो अबगाढा भवन्ति, यदा अवगाहा भवन्ति तदा एक एव धर्मास्तिकायादेशोऽवगाढो भवति, आकाशस्य लोकालोकरूपत्वाद प्रदेश अवगाढ है, यहां पर अद्ध समय कदाचितू अवगाढ होते भी हैं और कदाचित् नहीं भी होते हैं-यदि वे वहां पर अवगाह होते हैं तो अनन्तमात्रा में ही होते हैं। ___अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसे पूछते है-'जत्थ णं भंते ! एगे आगसत्यिकायपएसे ओगाढे, तत्थ केवया धम्मस्थिकायपएसा ओगाढा' हे भदन्त ! जहां पर एक आकाशास्तिकायप्रदेश अवगाढ़ है वहां पर धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाह हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं'सिय ओगाढालियन ओगाढा एको' हे गौतम ! वहां पर धर्मास्तिकायके प्रदेश कदाचित् अवगाढ हैं भी और कदाचित् अवगाढ नहीं भी हैं यदि वहां पर धर्मास्तिकाय प्रदेश अवगाढ होते हैं तो धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश ही वहां अबगाढ होता है, क्योंकि लोकालोक स्वरूप आकाश होता है और धर्मास्तिकाय का अवगाढ लोकाकाश में है-अलोकाकाश में છે, જ્યાં અધર્માસ્તિકાયને એક પ્રદેશ અવગાઢ છે, ત્યાં અદ્ધાસમ કયારેક અવગાઢ હોય છે અને કયારે અવગાઢ દેતા નથી જે તેઓ તે સ્થાન પર અવગાઢ હોય છે તે અનંત રૂપે જ હોય છે. गौतम स्वाभान प्रश्न-" जत्थ णं भते ! एगे आगामस्थिकायपएसे ओगादे, तत्थ केवइया धम्मत्थिकायपण्सा ओगाढा ?? 3 भगवन् ! rयां मे मासશાસ્તિકાયપ્રદેશ અવગાઢ હોય છે, તે પ્રદેશ પર કેટલા ધર્માસ્તિકાય. પ્રદેશે અવગાઢ હોય છે? __ महावीर प्रभुनी उत्तर-"खिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा, जइ ओगाढा एक्को" गौतम! माशय प्रशन। साना स्थान ५२ या२४ ધર્માસ્તિકાયના પ્રદેશ અવગાઢ હોય છે અને કયારેક અવગાઢ હોતા નથી જે અવગાઢ હોય છે તે ધર્માસ્તિકાયને એક જ પ્રદેશ ત્યાં અવગાઢ હોય છે. કારણ કે લેકલિક રૂપ આકાશ હેય છે અને ધર્માસ્તિકાયને અવગાઢ કાકાશમાં જ છે-અકાકાશમાં નથી કારણ કે અલેકાફાશમાં ધર્માન્તિકા

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