Book Title: Bhagwati Sutra Part 10
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 711
________________ भगवतीसूत्र ६८८ पदेशास्त्रामा भन्धि, एां-पैर आकाशास्ति हायस्यापि स्यात् एक, स्थान द्वौ, स्यात् बा, प्रदेशास्तपारगाढा भान्ति, शेवम्-उतापेक्षपानशिट जीवास्तिकायपुद्गलास्ति मायाद्धानमयविषयकं गमकं यथैव द्वयोः पुद्गलास्ति कायपदेशयोरवगाहनापरूणे प्रतिपादितं तथैव पुद्गलारितकायप्रदेशत्रयमरूपणेऽपि प्रतिस्तव्यम् , पुदालास्तिकायपदेशत्रयस्थानेऽनन्ता जीवपुद्गलादेशादा समया अव गाढा भवन्ति अवासम रानामनन्त समयक्षेत्रापेक्षया, इत्येवमवसे यम् । 'एवं एक्केको वडिययो परमो आइल्छएहिं तिहिं अस्थिकाएहि, सेसं जहेब, दोण्हं जा। दसव्ह सिय एकको, सि । दोन्नि, सिय तिनि जाब सिय दस ' एवं पूर्वोक्तरीत्या एकैको वर्द्धयितव्यः प्रदेशः आदिमानां त्रयाणाम् अस्तिकायानाम्धर्माधर्माकाशास्तिकायरूणामित्यर्थः यथा पुद्गलास्तिकायपदेशत्रयायगाहमरूस्तिकाय और अद्धासमय इन तीन विषयात गमक जैसा दो पुद्गलास्तिकायप्रदेशों की अवगाहना के प्ररूपण में कहा गया है, उसी प्रकार से वह पुद्गलास्निकाय के तीनप्रदेशों की प्रल्पणा में भी जानना चाहिये तात्पर्य ऐसा है कि पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेशों की अवगा. हना के स्थान में अनन्त जीव, अनन्तपुद्गल और अनन्त अद्धासमय अवगाढ होते हैं। अद्वासमयों में जो अनन्तता कही गई है वह समयक्षेत्र की अपेक्षा से कही गई है। 'एवं एकेको वडिपन्धो पएसो आइल्लएहिं तिहिं अधिकाहिं, सेम जहेब दोण्हं जाव दसव्हं, सिय एको सिय दोन्नि, मिय तिनि जाय सियदल' इस प्रकार पूर्वोत्तरीति से आदि के तीन अस्तिकार्यों का-धर्मास्तिकाय झा, अधर्मास्तिकाय का और आकाशास्तिकाय का एक २ प्रदेश वहां वृद्धिंगत (बहाना) करना चाहिये આકાશાસ્તિકાયના પ્રદેશની ત્યાં અવગાહના વિષે પણ એવું જ કથન સમજવું જીવાસ્તિકાય, પુદ્ગલાસ્તિકાય અને અદ્ધાસમય, આ ત્રણેના પ્રદેશોની ત્યાં અવગાહનાના વિષયમાં બે પગલાસ્તિકાયપ્રદેશની અવગાહનાના વક્તવ્યમાં કહ્યા પ્રમાણે જ કથન સમજવું એટલે કે પુદ્ગલાસ્તિકાયના ત્રણ પ્રદેશ જ્યાં અવગઢ હેય છે, ત્યાં અનન્ત જીવાસ્તિકાયપ્રદેશે, અનંત પુદ્ગલાસ્તિકાયપ્રદેશ અને અનન્ત અદ્ધાસમ અવગઢ હોય છે અદ્ધાસમ માં જે सनतना ही छे, ते समयनी अपेक्ष थे ४६ छ ' एव एकेको वाट्ट यत्रो पएसो आइल्लएहि तिहि अत्थिाएहि , सेसं जहेव दोण्हं, जाव दसण्ह, सिय एक्को, सिय दोन्नि, सिय तिन्नि, जाव सिय दस" मा रीते पूरित પદ્ધતિ અનુસાર આદિના ત્રણ અસ્તિકાના–ધર્માસ્તિકાય, અધર્માસ્તિકાય અને આકાશાસ્તિકાયના-એક એક પ્રદેશની વૃદ્ધિ કરવી જોઈએ જેવી રીતે

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