Book Title: Bhagavati Jod 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 359
________________ ६१ ६२ ६३ ६४ ३ ३ ६४ ३ ३ ३ ३ १ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ए कर्कश मृदु बिहु बहुवचन करी चउथी चउसठी कही । एवं आठ फर्श नां २५६ भांगा हुवे । ५६४. * प्यार फर्श नां सोलै जगीस, पंच फर्श इकसी अठवीस । पट फर्म विषे सुविमासी, भांगा तीनसौ ने चउरासी ॥ ५६५. सप्त फर्श पांचसी बार, अठ फासे वे सौ छप्पन धार बावर अनंतप्रदेशिक संग फर्श नां वारसौ छिन् भंग || 1 ५६६. शत बीस में पंचमुद्देश, व्यारसौ दोयमी ढाल एस । भिक्षु भारी माल ऋषिराय, सुख 'जय-जश' हरष सवाय ।। ढाल : ४०३ हा १. पूर्वे परमाणु प्रमुख, आखयो तसुं हिये परमाणु नोज पुन, कहिये से परमाणु पद २. परमाणु- पुद्गल प्रभु! आयो कि प्रकार ? जिन भाखे परमाणुओ-पुद्गल चिविध धार ॥ ३. द्रव्य रूप परमाणुओ, द्रव्य परमाणू जेह । वर्णादिक जे भाव नीं, वांछा रहित कहेह || अधिकार । विस्तार || ४. क्षेत्र परमाणू जे का इक आकाश प्रदेश । कह्य, काल परमाणू एह के समय एक सुविशेष || Jain Education International ५. भाव परमाणु जे बलि, तास भाव वर्णादि । मुख्यपणुं वांछ्यं तसु, सर्व जघन्य कृष्णादि ॥ ६. कतिविध द्रव्य परमाणु प्रभु ? जिन कहै चिविध तेह अछेद शस्त्रादिक करी, छेदण जोग्य न जेह ॥ *लय : म्हारी सासू रो नाम छे फूली १ ३ १ ५६५. एवं एते बादरपरिणए अनंतपए सिए खंधे सव्वेसु संजोए बारस छन्नउया भंगसया भवंति । (१० २०१६) For Private & Personal Use Only १. परमाण्वाद्यधिकारादेवेदमाह ( वृ० प० ७८८ ) २. कतिविहे णं भंते ! परमाणू पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे परमाणू पण्णत्ते, तं जहा३. दव्वपरमाणू तत्र द्रव्यरूपः परमाणुई व्यपरमाणु एकोऽर्वर्णादि भावानामविवक्षणात् द्रव्यत्वस्यैव विवक्षणादिति ( वृ० १०७८०) ४. परमाणू कालपरमाणू एवं क्षेत्रपरमाणु : आकाशप्रदेश: समय: कालपरमाणुः ( वृ० प० ७८८ ) ५. भावपरमाणू । (१० २०1३७) भावपरमाणू : --- परमाणुरेव वर्णादिभावानां प्राधान्यविवक्षणात् सर्वजन्यासत्यादिव ( वृ० १०७८) ६. दव्वपरमाणू णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! चव्विहे पण्णत्ते, तं जहा अच्छेज्जे, 'अच्छेज्ज' त्ति छेद्य :- शस्त्रादिना लतादिवत्तन्निषेधादच्छेद्यः ( वृ० प० ७०८ ) श० २० उ०५, ढा० ४०२, ४०३ ३४१ www.jainelibrary.org

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