Book Title: Bhagavati Jod 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१८. नेरइया णं भंते ! कि आतोवक्कमेणं उववज्जति ?
उत्पाद-उद्वतन पद १८. *नेरइया स्यूं भगवंत जी! रे, निज आतम करि तेह। आउखा नै उपक्रमे करी रे,
मरी नरक विषे उपजेह क ? १९. कै पर मैं उपक्रमे करी रे, नरक विषे उपजंत?
के उपक्रम विना मरी रे, नरके उपजवो हंत के ? २०. जिन कहै निज उपक्रम थी रे, पर उपक्रम करेह । फुन उपक्रम विना मरी रे, नरक विषे उपजेह के ।।
सोरठा २१. निज उपघात करेह, श्रेणिक नी परै जे मरी।
नरक विषे उपजेह, आत्म उपक्रम करि तिको ।।
१९. परोवक्कमेणं उववज्जति? निरुवक्कमेणं उव
वज्जति? २०. गोयमा ! आतोवक्कमेण वि उववज्जति, परोवक्क
मेण वि उववज्जंति, निरुवक्कमेण वि उववज्जति ।
२१. आत्मना--स्वयमेवायुष उपक्रम आत्मोपक्रमस्तेन मृत्वेति शेषः उत्पद्यन्ते नारकाः यथा श्रेणिकः,
(वृ०प०७९६) २२. 'परोपक्रमेण' परकृतमरणेन यथा कृणिकः,
((वृ० ५० ७९६)
२४ ठाणं वृ०प० २४५
२५. 'निरुपक्रमेण' उपक्रमणाभावेन यथा कालशौकरिकः
(वृ०प०७९६) २६. एवं जाव वेमाणिया।
(श० २०१९१)
२७. नेरइया णं भंते ! कि आतोवक्कमेणं उब्वति ?
२८. परोवक्कमेणं उव्वति ?
२२. पर नों मारयो जेह, कोणिक नी परै जे मरी।
नरक विषे उपजेह, पर उपक्रम करी तिको।। २३. तमिश्र अधिष्ठित देव, अग्नि ज्वाल करि बालियो।
कोणिक नै ततखेव, वृत्ति पर्याय विषे कह्यो। २४. कोणिक प्रति कृतमाल, सुर-हत गति छटी विषे ।
तृतीय उदेशक न्हाल, तुर्य ठाण टीका मझे ।। २५. विण उपक्रम करेह, कालसौकरिक नी परै।
मरी नरक ऊपजेह, निरुपक्रम करिनैं जिको। २६. *एवं जाव वेमाणिया रे, निज-पर-उपक्रमेह ।
वलि उपक्रम विना मरी रे, सहु दंडक उपजेह कै।। २७. नेरइया स्यूं भगवंत जी ! रे, निज उपक्रम करेह ।
पोते अपघात करि मरी रे, नरक थकी निकलेह कै? २८. पर उपक्रम करी मरी रे, पर उपक्रमज तेह ।
ते पर नों मारयो मरी रे, नरक थकी निकलेह के ? २९. उपक्रम विना मरी रे, नरक थकी निकलंत ।
निज पर कर थी नहीं मरै रे, आफे आउ क्षय हंत के ? ३०. जिन कहै निज उपक्रम करी रे,
निकले नहिं ते जंत । पर उपक्रम न नीकलै रे, उपक्रम विण निकलंत के ।। ३१. इम दश भवनपती कह्या रे, पृथ्वीकायिक जंत । जाव मनुष्य दंडक लगै रे,
तीनंइ करि निकलंत के ।। ३२. शेष नेरइया नी परै रे, नवरं इतरो विशेख । ज्योतिष वैमानिक तणे रे, च्यवन शब्द संपेख कै ।।
सोरठा ३३. उत्पत्ति उद्वर्तन, तसु अधिकार थकोज हिव ।
एहिज अर्थ कथन, वर वचनामृत वीर नां ।। *लय : सीता सुन्दरी रे
१९. निरुवक्कमेणं उव्वति ?
३०. गोयमा ! नो आतोवक्कमेणं उबट्टति, नो परोव
क्कमेणं उव्वति, निरुवक्कमेणं उव्वटंति ।
३१. एवं जाव थणियकुमारा । पुढविकाइया जाव मणुस्सा
तिसु उव्वटंति।
३२. सेसा जहा नेरइया, नवर-जोइसिय-वैमाणिया चयंति।
(श० २०१९२)
३३. उत्पादोद्वर्तनाऽधिकारादिदमाह-(वृ०५०७९६)
३६४ भगवती जोड़
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