Book Title: Bhagavati Jod 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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३४. नेरइया णं भंते ! किं आइड्ढीए उववज्जति ?
परिड्ढीए उववज्जति ?
३४. *नेरइया स्यूं भगवंत जी ! रे, आत्म ऋद्धि उपजेह ? आत्मबल करि ऊपज रे,
___ कै पर ऋद्धि ऊपजै तेह के ? ३५. जिन कहै आतम बल करी रे, नरक विषे उपजत । पर बल करि नहिं ऊपजै रे,
इम जाव वैमानिक हंत कै ।।
३५. गोयमा ! आइडुढीए उववज्जति, नो परिड्ढीए
उववज्जति । एवं जाव वेमाणिया। (श० २०।९३)
३६. 'आइड्ढीए' त्ति नेश्वरादिप्रभावेणेत्यर्थः
(वृ० ५० ७९६)
आइड्ढीए उव्वति ?
३७. नेरइया णं भंते ! कि
परिड्ढीए उव्वति?
सोरठा ३६. ईश्वर प्रेरित यात, नरक विषे वा स्वर्ग में। तसु मत निरस्त ख्यात,
आतम बल इह वचन करि ।। वा०-आत्मबल करी ऊपज, इम भगवंत कह्यो। ते भणी जे पाखंडी कहै ईश्वर नों प्रेरघो नारकी नै विषे तथा स्वर्ग नै विषे ऊपज, तेहगें मत निराकरिय। ३७. *नेरइया स्यूं भगवंत जी ! रे,
आत्म ऋद्धि करि जेह । आत्म बल करि नीकलै रे?
के पर बल करि निकलेह के ? ३८. श्री जिन भाखै नेरइया रे, आतम बल निकलेह । पर बल करि नहिं नीकल रे,
इम जाव वैमानिक लेह कै ।। ३९. नवरं जोतिषि देवता रे, फुन वैमानिक सार ।
चवै शब्द कहिबो इसो रे, ए अभिलाप उदार के ।। ४०. नेरइया स्यूं प्रभु! ऊपजे रे, आतम कृत कर्मेह ? ज्ञानावरणी प्रमुखे करी रे,
के पर कृत कर्म उपजेह के ?
३८. गोयमा ! आइड्ढीए उब्वटंति, नो परिड्ढीए
उब्वटंति । एवं जाव वेमाणिया,
४१. जिन कहै नेरइया ऊपजै रे, आत्म कृत कर्मेह ।
पिण पर कृत कर्मे करी रे, नहिं उपजे छ तेह के ।। ४२. एवं जाव वेमाणिया रे, निज कृत कर्म उपजेह ।
पर कृत कर्मे न ऊपजे रे, इम उव्वट्टणा दंडकेह के।। ४३. नेरइया स्यूं प्रभु ! ऊपजै रे, आत्म प्रयोग करेह ?
निज व्यापार उद्यम करी रे, कै पर उद्यम उपजेह कै?
३९. नवरं-जोइसिया वेमाणिया य चयंतीति अभिलावो।
(श० २०१९४) ४०. नेरइया णं भंते ! कि आयकम्मुणा उववज्जति ?
परकम्मुणा उववज्जंति ? 'आयकम्मुण' त्ति आत्मकृतकर्मणा-ज्ञानावरणादिना
(वृ० ५०७९६) ४१. गोयमा ! आयकम्मुणा उववज्जति, नो परकम्मुणा
उववज्जति । ४२. एवं जाव वेमाणिया । एवं उब्वट्टणादंडओ वि।
(श० २०।९५) ४३. नेरइया णं भंते ! कि आयप्पओगेणं उववज्जति ?
परप्पओगेणं उववज्जति। 'आयप्पओगेणं' ति आत्मव्यापारेण ।
(वृ० ५०७९६) ४४. गोयमा ! आयप्पओगेणं उववज्जति, नो परप्पओगेणं
उववज्जति । एवं जाव वेमाणिया। ४५. एवं उव्वट्टणादंडओ वि। (श० २०१९६)
उत्पादाधिकारादिदमाह ---- (वृ० प० ७९६)
४४. जिन कहै नेरइया ऊपज रे, आत्म व्यापार करेह ।
पर उद्यमे नहिं ऊपजै रे, इम जावं वैमानिक लेह कै।। ४५. इम उब्वट्टणा नीकलवा तणों रे,
दंडक पिण कहिवाय । ऊपजवा नां अधिकार थी रे, ऊपजवं हिव आय के। *लय : सीता सुन्दरी रे
श० २०, उ०१०, ढा० ४०७ ३६५
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