Book Title: Bhagavati Jod 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 386
________________ ७८. अल्प-बहुत नों न्याय, पूर्वे आख्यो छै तिको। एक आचार्य ताय, भाखै छै इण रीत सूं ।। ७९. अन्य आचार्य ख्यात, वस्तु तणां स्वभाव थी। इहां स्थानक अवदात, अल्प-बहुत नहिं छै इहां ।। ८०. जो स्थानक नों होय, तो सिद्धा कइसंचिया। स्थानक तेहनां जोय, छै बह पिण थोड़ा कह्या ।। ८१. जेह अवक्तव्य स्थान, एकपणे पिण तेहनें । संखगुणा तिम आन, वस्तु स्वभाव ते भणी ।। ८२. एक समय सिद्ध होय, दोय आदि दे जे वलि । ते सिद्ध थोड़ा जोय, लोक स्वभाव थकीज ए॥ ८३. *शत बीसम देश दशम नों रे, च्यारसौ सातमी ढाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी रे, 'जय-जश' मंगलमाल के । ७९. अन्ये त्वाहुः-वस्तुस्वभावोऽत्र कारणं न तु स्थानकाल्पत्वादि, (वृ० प० ७९९) ८०. कथमन्यथा सिद्धाः कतिसंचिताः स्थानकबहुत्वेऽपि स्तोकाः (वृ० प० ७९९) ८१,८२. अवक्तव्यकस्थानकस्यकत्वेऽपि संख्यातगुणा द्वघादित्वेन केवलिनामल्पानामायुः समाप्ते: इयं च लोकस्वभावादेवेति । (वृ० प० ७९९) ढाल:४०८ १. नारकाधुत्पादविशेषणभूतसंख्याऽधिकारादिदमाह (व० ५०७९९) सोरठा १. नरक प्रमुख उत्पाद, तास विशेषण भूत जे । संख्याधिकार लाध, तेह थकी कहिवं हिवे ।। षट्कसमजितादि पद २. नारक स्यूं भगवंत ! छक्कसमज्जिया हंत ? आज हो, अथवा कहीजै नोछक्कसमज्जिया जी ।। २. मेरइयाणं भंते ! किं छक्कसमज्जिया? नोछक्क समज्जिया? ३. एक समय षट एक आदि पंच ऊपज, छक्कसमज्जियाय । उपज, नोछक्कसमजिताय ।। ३. एकत्र समये ये समुत्पद्यन्ते तेषां यो राशि: स षट प्रमाणो यदि स्यात्तदा ते षट्कसमजिता उच्यन्ते । 'नोछक्कसमज्जिय' त्ति नोषटकं षट्काभावः ते चैकादयः पञ्चान्तास्तेन नोषट्केन-एकाद्युत्पादेन ये समजितास्ते तथा (वृ०प०७९९) ४. छक्केण य नोछक्केण य समज्जिया? ४. छक्केण नोछक्केण, समजिताज कहेण । आज हो, दोनइ इक वचने विकल्प तीसरो जी। ५. एकादिक पंच लग अधिक, उपनो षट करि जेह । एक समय मांहै तिको, ते षट नोषटकेह ।। ५. 'छक्केण य नोछक्केण य समज्जिय' त्ति एकत्र समये येषां षट्कमुत्पन्नमेकाद्यधिकं ते षट् केन नोषट्केन च सजिता उक्ताः । (वृ० ५०७९९) *लय : सीता सुन्दरी रे लिय : दान सूं दालिद्र दूर ३६८ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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