Book Title: Bhagavati Jod 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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गीतक छंद
१. वर बोसमा ए शतक रूपज, सखर कमल सुवासितं । फुन वृद्ध वच रवि किरण करिके, अधिक हीज विकासित || २. विस्तारकरणज द्वार करि है, भ्रमर नीं परि सेवितं । इम कही बीसम शतक जोड़ज, नमो श्री श्रुतदेवतं ॥
विशतितमशते दशमोद्देशकार्यः ।। २०।१०।।
३७६ भगवती - जोड़
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१२. शतकम विकाशित बुद्धवचनरविकिरणः । विवरणकरणद्वारेण सेवितं मधुलिहेव मया ॥१॥
(बु० १० ८००)
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