Book Title: Bhagavati Jod 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 388
________________ २३. वलि अनेरा चीन, जघन्य एक बे तीन । आज हो, उत्कृष्ट पंच प्रवेश समूपना जी ॥ २४. तेहरा जोय, पंचमे विकल्प होय । आज हो, घणेरे छक्के नोकरि समज्जिया जी ॥ २५. तिण अर्थे इम ख्यात, विकल्प पंच संजात । आज हो, इमहिज जावत थणियकुमार ने जी ।। २६. पृथ्वी पूछा ताय, जिन कहै सांभल वाय । आज हो, घुर भंग छक्कमज्जिया नहीं जिके जी ।। २७. नोक समजताय, दूजो भंग कहाय । आज हो, ते पिण नहीं छै पृथ्वीकाय में जी । २८. वलि षटके करि ताहि, नोछक्क समज नांहि । आज हो, ए पिग नहीं छे भांगो तीसरो जी ।। २९. बहु-पटके करि ताय समजता कहिवाय । आज हो, विकल्प चोथो पृथ्वी में लहै जी ॥ ३०. बहुषट नोषटकेह, समजता आज हो, पंचम विकल्प पिण पार्व ३१. एकेंद्रिय ने मांय प्रवेशन कहिवाय छे वली जी ॥ Jain Education International जेह । सोरठा असंख्यात नो ईज । चरम भंग बे ते घणो ॥ ३२. *किण अर्थ इम ख्यात, धुर त्रिहुं भंग न थात । आज हो, विकल्प चरम दोय पृथ्वी मझे जी ? ३३. भाखे जिन गुणगेह, पृथ्वीकायिक जेह | आज हो, अनेक छक्के करि प्रवेशन करें जो ।। ३४. पृथ्वीकायिक तेह बहु करे | आज हो, विकल्प चोथो पाव ते भणी जी ॥ ३५. जे बलि पृथ्वीकाय अनेक चक्क करि ताय । आज हो, अन्य वलि नोछक्क करिनें ऊपनां जी ।। २६. जघन्य एक बे तीन, उत्कृष्ट पंच कमीन आज हो, प्रवेशन करिके तिहां समूपना जी ॥ ३७. पृथ्वीकाविक तेह, बहु छक्क नोषटकेह । । आज हो, पंचम विकल्प पाव इह विधे जी ।। ३८. तिण अर्थ कहिवाय, घुर विकल्प विहु नांव आज हो, विकल्प चरम दोष पृथ्वी म जी ॥ ३९. एवं जावत जाण, वनस्पती लग आण। आज हो, विकल्प चरम दोय पावे तिहां जो ॥ ४०. बेइंद्रिया थी लेह, जाव वैमानिक जेह | आज हो, यति सिद्ध कहिया नारक नीं परं जी ॥ ४१. प्रभु ! नारक विकल्प पंच, कुण-कुण थकीज संच । आज हो, अल्प बहु तुल्य विशेष अधिक ही जी ? * लय : दान सूं दारिद्र दूर ३७० भगवती जोड़ २३. अण्णेण य जहणेणं एक्केण वा दोहि वा तीहि वा, उवकोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति २४. ते णं नेरइया छक्केहि य नोछक्केण य समज्जिया । २५. से तेणट्ठेणं तं चैव जाव समज्जिया वि । एवं जाव वणिकुमारा । ( श० २०1१०६ ) २६. पुढविक्काइयाणं पुच्छा । गोयमा ! पुढविक्काइया नो छक्कसमज्जिया, २७. नो नोछक्कसमज्जिया, २८. नो छक्केण य नोछक्केण य समज्जिया, २९. समजा, ३०. छक्केहि य नोछक्केण य समज्जिया वि । २१. एकेन्द्रियाणां स्वयंख्यातानामेव प्रवेजनात् प समजिताः तथा पद्नषट्केन च समजिता इति विकल्पद्वयस्यैव सम्भव इति, ( वृ० प० ८००) ३२. से केणट्ठेण जाव समज्जिया वि ? (१० २०११०७) २२. जेणं पुढविनकाइया नेगेहि कहि सहि पविति ३४. ते णं पुढविक्काइया छक्केहिं समज्जिया । २५.३६.जेाइया नेगेहि नाहिय अष वजह एक्केण वा दोहि वा तीहि वा उनकोसे पंचरण पवेसणणं पविसंति For Private & Personal Use Only ३७. विकाइया हि नो य समज्जिया । ३८. से तेणट्ठेणं जाव समज्जिया वि । ३९. एवं जाव वणस्सइकाइया । ४०. बेंदिया जाव वेमाणिया, सिद्धा जहा नेरइया । (श० २०1१०८ ) ४१. एएसि णं भंते! नेरइयाणं नेरइयाणं एक्कसमजिवाण, 'कयरे कयरेहितो अप्पा वा ? बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा ? *********** www.jainelibrary.org

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