Book Title: Bhagavati Jod 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सोरठा ३. उपक्रम करी सहीत, अप्राप्तकाल आयू तणों निर्जरियो इण रीत, सोपक्रम इम वृति में ॥
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४. तेह की विपरीत, निरुपक्रम आयू तिको ए उपक्रम रहीत, वृत्तिकार तो हम कहे ॥ ५. आउ विण कर्म सात, सिथिल थकी दृढ़ बंध ह्वं । दृढ़ सिथिल पिण थात, ए प्रकृति बंध आश्रयी ॥ ६. स्थिति अनुभाव प्रदेश, अल्प बहु बहु अल्प छे । ठाम ठाम सुविशेष कह्यो सूत्र में वीर प्रभु । ७. ते माटै धर्मसीह, सोपक्रम निरुपक्रम नों । अर्थ अन्यविध ईह, ते कहियै छै सांभलो || ८. पन्नवण तर्णेज न्याय, नर तिरि निरुपक्रम नैं परभव आयू ताय, तीजे भागे ईज बंध | ९. सोपक्रम नैं संध, तृतीय नवम शत वीसमे । इक्यासी में बंध, इम अनुक्रम छेहड़े बंधै ॥ १०. सुर नारक सुविशेष, निरुपक्रम आयूज छै बंध मास षट शेष, सोप निरुपक्रम लच्छ ए ॥ ११. सप्त प्रकारे जाण, आयू नो पुद्गल भई स्नेहादिक थी माण, ठाणांग ठाणे सप्तमे । १२. लछमणजी मृत्यु पाय, राम मरण सुण स्नेह थी । चक्रे करि वध बाय, जे प्रतिवासुदेव नों ॥ १३. अग्नि करि मृत्यु पाव, गजमुखमाल मुणिंद जे। ए सगला कहिवाय, निस्पक्रम आयु- धणी ।। १४. तिणसुं सप्त विधेह, सोपक्रम नों एहवं नियम न एह को धर्मसी
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सोपक्रमायु न कोय ।
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१५. नारक पूचषां जिन कहै रे निरुपक्रमायु नेरइया रे,
इम जाव थणित लग जोय के ।। १६. पृथ्वी जीव तण परे रे, जान मनुष्य पिण एम। व्यंतर ज्योतिषि वैमाणिया रे,
कहिवा नारक जेम कै ॥
१७. सुर नारका तिरि मणु युगलिया,
*लय : सीता सुन्दरी रे
गीतक छंद
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ईज मृत्यु ।
इह विधे । (ज० स० )
पुरिवउत्तम जे का। फुल चरम तनु निरुपकमायु, शेष सोपक्रमायुवा ||
३. 'सोवक्कमाउय' त्ति उपक्रमणमुपक्रमः — अप्राप्तकालस्यायुषो निर्जरणं तेन सह यत्तत्सोपक्रमं तदेवंविधमायुर्येषां ते
४. तद्विपरीतास्तु निरुपक्रमायुषः,
८. पन्नवणा ६।११६
११. ठाणं ७।७२
( वृ० प० ७९५) ( वृ० प० ७९५)
१५. नेरइयाणं -- पुच्छा ।
गोयमा ! नेरइया नो सोवक्कमाउया निरुवक्कमाया । एवं जाव थणियकुमारा ।
१६. पुढविक्काइया जहा जीवा एवं जाव मणुस्सा । वाणमंतर जोइसिय-वेमागिया जहा नेरइया ।
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( श० २०/९० )
१७. 'देवा नेरइयावि य असंखवासाज्या य तिरिमणुया । उत्तमपुरिसा व तहा परिमसरीरा निश्वकमा ॥१॥ सेसा संसारत्था हवेज्ज सोवक्कमाउ इयरे य । सोवक्कमनिरुवक्कम भेओ भणिओ समासेणं ॥ २ ॥
(० ० ७९५)
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श० २० उ० १०, डा० ४०७
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