Book Title: Bhagavati Jod 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 380
________________ ८०. रुचकवरे पिण एम प्रतिमा वांदी केम, ८१. समवायंग मांय, सिद्धायतन विना तिथे। न्यायदृष्टि अवलोकिये ॥ तीयंकर पउवीस जे तरु-तल केवल पाय, चैत्य तरु चउवीस इम ।। ८२. चैत्य शब्द नों ताम, ज्ञान अर्थ तेह कारणें । ज्ञान तणां गुणग्राम, केयक अर्थ करे इसो ॥ ५३. चैत्य जिनेश्वर ताम, अर्थ धर्मसी इम कियो । ज्यां लीधो विश्राम, द्वितीय आवसग तिहां कियो || ८४. वलि आव्या निज स्थान, द्वितीय आवसग पिण तिहां । बहुवचने करि जान, वांद्या छै जिनराज नें ।। ८५. चैत्य नाम वर्द्धमान, सुप्रशस्त मन हेतु ते । अर्थ चैत्य नुं जान, रायप्रश्रेणी वृत्ति में ॥ ८६. रायप्रणी मांहि वलि उबवाई भगवती । प्रमुख सूत्र में ताहि, प्यार नाम जिन मुनि तथां ॥ ८७. कल्लाणं मंगलीक, मंगलीक बलि देवयं वेदयं । । ए चिहुं नाम सधीक, आख्या मुनि जिनवर तणां ।। ८. तिणसुं चैत्य कहेह, श्रीजिनराजज वंदिया । दरियावही गुणेह लोगस्स में बहु जिन भणी ।। ८९. जातां आवत जान, बलि विधाम लिये तिहां। फुन आवे निज स्थान, इरियावही लोगस्स कहे ॥ ९०. ए मुनि नो आचार, तिणसुं बहुवचने करी । लोगस्स विषे उदार, वांधा छे जिनराज में ॥ ९१. चैत्य शब्द जिन जेह, लोगस्स विषे का जिके। वच स्तुती वंदेह, अर्थ धर्मसी इम कियो । ९२. *शत बोसम नवम ताय, ढाल ब्यारसी छठी कही। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय, 'जय जश' सुख संपति लही ।। विशतितमशते नवमोद्देशकार्थः || २० | १ || ढाल : ४०७ हा १. नवम उदेशक अंत में, चारण मुनि आख्यात | सोपक्रम पिण ते हुवे, सोपक्रम हिव आय 11 आयुष्य पद गोयम ! सांभलो रे । (धुपदं ) २. हे प्रभुजी ! स्यूं जीवड़ा रे, सोपक्रमायु बंध | केनोपक्रमात रे? जिन भावित के Jain Education International *लय : स्वामी भाखं बे, सुण विभीषण बात लय : सीता सुन्दरी रे ३६२ भगवती जोड़ ८१. समवाओ-पइण्णगसमवाओ सू० २३१ ८५. रायप० वृ० पृ० ५२ ९२. विशतितमशते नवमः । (90 90 1098) १. नवमोद्देश चारणा उक्तास्ते प सोपनमायुष इतरे च संभवन्तीति दशमे सोपक्रमादितया जीवा निरूप्यन्ते ( वृ० प० ७९५) २. जीवा णं भंते! किं सोवक्कमाउया ? निश्वक्क माउया ? गोयमा ! जीवा सोवक्कमाउया वि, निरुवक्कमाउया वि । ( वृ० प० ७९२) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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