Book Title: Bhagavati Jod 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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४१. तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छेज्जा,
४२. जंघाचारणस्स णं गोयमा ! तहा सीहा गती, तहा
सीहे गतिविसए पण्णत्ते सेसं तं चेव (श० २०८५)
४१. चिबठी तीन रै मांहि, इकवीस बार कहाव ही।
चउफेर फिरने ताहि, पाछो शीघ्रज आवही। ४२. जंघाचारण नीज, तेहवी उतावली गति कही। गति विषय शीघ्र तिमहीज, .
शेष तिमज कहिये सही ।। ४३. जंघाचारण तास, कहिय तिरछी केतलं ।
गति विषय विमास, उत्तर जिन भाखै भलुं ।। ४४. इहां थकी मुनि तेह, एके उत्पाते करी ।
रुचकवर द्वीपेह, लिये विश्राम हरष धरी ।। ४५. रुचकवर द्वीपेह, समोसरण करने वरी।
तिहां चैत्य वांदेह, चैत्य प्रतै वांदी करी ।। ४६. त्यां थी पाछो वलेह, बीजी वार ऊपड़वे करी।
नंदीश्वर द्वीपेह, लिये विश्राम हर्ष धरी ।। ४७. नंदीश्वर द्वीपेह, मुनि विश्राम लेई वरी।
तिहां चैत्य वांदेह, चैत्य प्रतै वांदी करी ॥ ४८. इहां शीघ्र आवेह, स्व स्थानक आवै वली।
इहां चैत्य वांदेह, तिरछी विषय गति एतली ।।
४३. जंघाचारणस्स णं भंते ! तिरिय केवतिए गतिविसए
पण्णत्ते ? ४४. गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पाएणं रुयगवरे दीवे
समोसरणं करेति, ४५. करेत्ता तहिं चेइयाई वंदति, वंदित्ता
४६. तओ पडिनियत्तमाणे बितिएणं उप्पाएणं नंदीसरवर
दीवे समोसरणं करेति, ४७. करेत्ता तहिं चेइयाइं वंदति, वंदित्ता
४८. इहमागच्छइ, आगच्छित्ता इहं के इयाई वंदति,
जंघाचारणस्स णं गोयमा ! तिरियं एवतिए गतिविसए पण्णत्ते।
(श० २०।८६) ४९. जंघाचारणस्स णं भंते ! उडढं केवतिए गतिविसए
पण्णते ? ५०. गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पाएणं पंडगवणे
समोसरणं करेति, ५१. करेत्ता तहिं चेइयाइं वंदति, वंदित्ता
४९. जंघाचारण तास, कहियै ऊंच केतलु।
गति नों विषय विमास, भाखै जिन उत्तर भलुं । ५०. इहां थकी मुनि तेह, एके उत्पाते करी ।
पंडगवन नै विषेह, लिये विश्राम हरष धरी ।। ५१. ते पंडगवन ने विषेह, मुनि विश्राम लेई वरी ।
तिहां चैत्य वांदेह, चैत्य प्रत वांदो करी ।। ५२. त्यां थी वलतो तेह, बीजी वार ऊपड़वै करी ।
नंदनवन नैं विषेह, करै विश्राम हरष धरी ।। ५३. नंदनवन नैं विषेह, विश्राम समोसरण वरी।
तिहां चैत्य वांदेह, चैत्य प्रतै वांदी करी ॥ ५४. इहां आवे निज स्थान, इहां चैत्य वांदै वली।
जंघाचारण जान, गमन विषय ऊर्द्ध एतली ।।
५२. तओ पडिनियत्तमाणे बितिएणं उप्पाएणं नंदणवणे
समोसरणं करेति, ५३. करेत्ता तहिं चेइयाई वंदति, वंदित्ता
५५. लब्धि प्रजूंजी ते स्थान,
आलोयां-पडिक्कमियां विना । काल करै मुनि जान, नहिं छै तास आराधना ।। ५६. ते स्थानक आलोय-पडिकमी काल करै तरै।
आराधना तसु होय, सेव भंते! सत्य वच सिरै ।।
५४. इहमागच्छइ, आगच्छित्ता इह चेइयाइं वंदति,
जंघाचारणस्स णं गोयमा ! उड्ढं एवतिए गतिविसए
पण्णत्ते । ५५. से णं तस्स ठाणस्स अणालोइय-पडिक्कते कालं करेइ
नत्थि तस्स आराहणा। ५६. से णं तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कते कालं करेति
अस्थि तस्स आराहणा। (श० २०८७) सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ।
(श० २०१८)
सोरठा ५७. इहां एहवं कहिवाय, विद्याचरण नुं गमन ।
बे उत्पाते थाय, इक उत्पाते आगमन ।। ५८. जंघाचारण जेह, इक उत्पाते करि गमन ।
बे उत्पात करेह, कहियै तेहy आगमन ।।
५७. यच्चेहोक्तं विद्याचारणस्य गमनमुत्पादद्वयेन आगमनं चैकेन
(वृ० प० ७९५) ५८. जङ्घाचारणस्य तु गमनमेके नागमनं च द्वयेनेति
(वृ० प०७९५)
३६० भगवती जोड़
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