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( ११६ ) और शिष्यों के साथ किसी बनाढय यजमान के यहाँ यन करा रहे थे, तब उन्होंने हजारों स्त्री-पुरुषों को जिनेन्द्र महावीर के दर्शन करने को जाते हुये देखा । पहले वह समझे कि वे असंख्य नर-नारी उनके यज्ञ को देखने के लिये आ रहे हैं, तो उन्हें आनन्द हुश्रा । किन्तु दूसरे क्षण जब उन्होंने देखा कि वे स्त्रीपुरुप उनके यज्ञ की योर ऑख उठा कर भी नहीं देखते तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने किसी से पूछा तो मालूम हुआ कि लोग सर्वज्ञ प्रभू महावीर की वन्दना के लिये जा रहे हैं। वह मन ही मन कहने लगे कि 'मेरे सिवाय भी क्या दुनिया में कोई महापडित है ? बड़ा आश्चर्य है कि जनसमुदाय इतनी जल्दी वैदिक क्रियाकाण्ड से विमुख हो गया और यज्ञमण्डल की ओर आकर्षित नहीं हो रहा है ! किन्तु उन्होंने यह न विचारा कि वैदिक क्रियाकाण्ड और रक्तमय यज्ञों से जनता का हृदय ऊब गया है। उसे पता है, अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर के सर्वहितकर तीर्थ का सर्वोदय हो चुका है । परन्तु इन्द्रभूति तो विद्या के मद में चर थे वस्तुस्थिति वह क्या देखते ? उनके घमंडी हृदय को ठेस लगी-वह तिलमिला गये । उन्होंने समझा, रूढिवाद का विरोधी वह कोई पाखडी है। उसके पाखंड का अन्त करना चाहिये।
इसी समय इन्द्र अपने कौशल को सफल होता जानकर इन्द्रभूति गौतम के निकट पहुँचा । इन्द्र जानता था कि यद्यपि इन्द्रभूति गौतम बड़ा घमंडी और मानी व्यक्ति है, परन्तु उसकी बुद्धि निर्मल और पवित्र है। वही भ० महावीर की निकटता में सच्चा लोकोपकारी वन जायगा । इसलिये एक कौतुक उसने