Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Jain Parishad Publishing House Delhi
Publisher: Jain Parishad Publishing House Delhi

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Page 357
________________ ( ३३७ ) } से प्राप्त करे ! इस प्रसंग मे खास ध्यान देने की बात यह है कि जैनी राजाओं का शासनकाल भारतीय इतिहास मे स्वर्णयुग रूप मे चमक रहा है। कई जैनी राजाओं ने अपने साहस और शौर्य से भारत को विदेशियों के शासनभार से मुक्त किया था -- उसे स्वाधीन बनाया था । सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य ने यूनानियों के आक्रमण से भारत को मुक्त किया था । यह सम्राट् जैन श्रुतकेवली भद्रबाहु के शिष्य थे और अन्तमे अपने पुत्रको राज्यभार सौप कर मुनि हो गये थे । गुरु और शिष्य दोनों ने ही दक्षिण भारत मे चंद्रगिरि पर्वत पर जाकर तपस्या की थी - वहाँ उनके चरण और स्मृति चिन्ह अंकित है !! उपरान्त ऐल खारवेल ने इंडोग्रीक राजा मनेन्डर को भारत में आगे नहीं बढ़ने दिया था - वह खारवेल का सैन्यागमन सुनते ही मथुरा छोड़ कर चला गया था २ । भारत को स्वाधीन बनाने का श्रेय फिर एक जैन सम्राट् को मिला । ऐसे ही शकों को परास्त करने वाले विक्रमादित्य भी जैनी थे और अवधमे मुसलमानों से सफल मोर्चा जैनी राजा सुहृदयध्वज ने ही लिया था । ३ सारांश यह कि भ० महावीर के भक्त भारतके चमकते हुये रत्न थे, जो उनके धर्मप्रभाव को स्वयं प्रगट करते है ! गृहस्थ ही नहीं, अरण्यवासी दिग्गज विद्वान् सन्यासी और परिव्राजक भी भ० महावीर के धर्म से प्रभावित हुये थे । पाठक पढ़ चुके हैं कि भ० महावीर के प्रमुख शिष्य गणधर इन्द्रभूति गौतम प्रभति जैनधर्म में दीक्षित होने के पहले वैदिक सम्प्रदाय के उल्लेखनीय विद्वान् थे । वे अपने शिष्य समुदाय सहित भ० I १. संजैइ०, मा० २ खंड १ पृष्ठ २४६- २३८ २. पूर्व पुस्तक खंड २ पृ० ११ १७ ३. पूर्व पृ० १४६

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