Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Jain Parishad Publishing House Delhi
Publisher: Jain Parishad Publishing House Delhi

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Page 374
________________ ( ३५८ ) प्राचीन भारत में स्वर्णमुद्राये भी धर्मभाव को लेकर बनाई जातीं थीं। उनमें से एक सुवर्णमुद्रा पर सिंह आदि ऐसे चिन्ह जिनसे प्रगट होता है कि वह मुद्रा भ० महावीर के भक्त द्वारा उनकी स्मृति में ढाली गई थी ! परमतावलम्बियों से शास्त्रार्थ करने के लिये यह धार्मिक मुद्रायें एक सार्वजनिक चबूतरे पर रख दीं जातीं थीं । कहीं-कहीं ऐसी पाषाण मूर्तियाँ भी मिलीं हैं, जिनमें राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला वालक महावीर को लिये हुये चित्रित हैं । कंकाली टीला से एक पाषाणस्ट मिला है जिसमें भ० महावीर की बालकालीन घटना अङ्कित है । वहीं से क्षत्रियाणी त्रिशलाकी भी मूर्ति मिली है। 'कल्पसूत्र' की कुछ ऐसी प्रतियाँ भी मिलती है जिनमें भ० महावीर के चित्र वने हुए हैं । जैन मन्दिरों में भी वीर जीवन सम्बन्धी चित्र चित्रित मिलते हैं । सारांश यह कि भक्तिप्लावित हृदयों ने अपनी भक्ति का प्रकाश विविध रूप से करके भ महावीर के जीवन को सजीव और प्रभावशाली बना रक्खा है ! 1 मम० पृ० १४६-२४०

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