Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Jain Parishad Publishing House Delhi
Publisher: Jain Parishad Publishing House Delhi

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Page 325
________________ ( ३०५ ) 'ऋग्वेद' - १'वराह पुराण' २ -- ' अग्निपुराण' ३ आदि ग्रंथों में भी ऋषभदेव का उल्लेख है । उनका अपर नाम वृषभ था । लोग उन्हें आदिनाथ भी कहते थे । वौद्धग्रंथों मे भी ऋषभदेव ही जैनधर्म के संस्थापक कहे गये हैं । डा० स्टीवेन्सन सा० हिन्दू पुराणों मे वर्णित ऋषभदेव को जैनियों के प्रथम तीर्थङ्कर बताते | डा० फुहरर ने मथुरा के स्तूपका अध्ययन करके निश्चय किया है कि एक अति प्राचीन समय मे श्री ऋषभदेव को अर्चन आदि अर्पित किये गये थे । ५ स्व० श्री रामप्रसादजी चंदा ने सिंधु उपत्यका से प्राप्त मूर्तियों को तीर्थकर ऋषभ के समान ही बतलाया था । ६ अतः पाठक स्वयं समझ सकते है कि तीर्थङ्कर ऋषभदेवजी का समय कितना प्राचीन है । वह रामचन्द्रजी से भी बहुत पहले आर्य सभ्यता के अरुणोदय मे हुये थे । उनके बाद वाईस तीर्थङ्कर भ० महावीर से पहले हुये थे । रामचन्द्रजी २० वें तीर्थङ्कर के समय में हुये थे । इस प्रकार पाठकगण, देखे कि ऋषभदेव जी भ० महावीर १ ऋषभं मासमानानां सपरनानां विषासहिम् । इत्यादि• ऋग्वेद मामा २४ २. 'तस्य भरतस्य पिता ऋषभः, हेमाद्र े दक्षिणं वर्षे महद्भारत नाम शशस ॥' इत्यादि - ३. ऋषभो मरुदेव्याब्ज ऋषभाद्भरतोऽभवत् । भरताद्भारत वर्षे भरतात्सुमीतस्त्वभूत् ॥' अग्नि पु० ४. Stevenson, Kalpasutra, Intro. १ भम पृ० २१ ' 1 ६. The standing deity figured on seals 3 to 5 (P]. II) with a bull in the foreground may be the proto-type of Rishabha. — The Modern Review, August 1932. 1 - ८

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