Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Jain Parishad Publishing House Delhi
Publisher: Jain Parishad Publishing House Delhi

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Page 343
________________ ( ३२३ ) उस पर्वत का नाम उपरान्त चन्द्रगिरि प्रसिद्ध होगया और उस पर सम्राट् चन्द्रगुप्त की पावन स्मृति मे मंदिर और मूर्त्तिया निर्मित की गई जिनमें सम्राट चन्द्रगुप्त के जीवन की घटनायें भी उकेरी हुईं हैं । इस घटना के ? पश्चात् जब दक्षिण भारत से संघ लौटकर उत्तर भारत आया तो वह यह देखकर विस्मित हुआ कि दुष्काल की कठिनाइयों ने उत्तर भारत में रहे हुये निर्ग्रन्थ श्रमणों को शिथिलाचारी बना दिया है - वे लोग वस्त्रों का प्रयोग करने लगे है । आगन्तुक संघ ने उनका सुधार करना चाहा परन्तु वह शिथिलाचार को छोड़ न सका२ । प्रमाद के वशमें हुआ जोव सत्य से भटकता ही है । उसपर समय विषम हो चला था - भविष्य दूरुह होता दिख रहा था। इस कलिकाल मे निर्मन्थ श्रामण्य का पूर्ण पालन एक प्रकार से असम्भव ही है। ऐसा सोचकर स्थूलभद्रादि जैनाचार्यों ने स्वकल्पित आचार नियमों का प्रतिपादन कर जैनसंघ को दो धाराओं मे बहने दिया । इसीलिये बौद्धों ने लिखा कि वीर निर्वाण के पश्चात् निर्ग्रन्थ आपस में लड़े झगड़े और बंट गये । किन्तु इस बंटवारे का अर्थ यह नहीं कि मौर्यकाल में ही दिगम्बर और श्वेताम्बर जैसे दो भिन्न सम्प्रदाय खड़े हुये थे, प्रत्युत एक ही संघ में दो प्रकार के साधुगण अपनी चर्या मे लीन थे । नग्न रहने की प्राचीन परम्परा को दोनों ही महत्व देते थे और दोनों ही नग्न रहते थे । हॉ, प्राचीन परम्पराके विद्रोही प्रगतिवादी समयानुसार प्रवृत्ति कर रहे थे । वे जब बाहर निकलते तो एक खंड वस्त्र कलाई पर लटकाकर नग्नता का १. जै० शि० सं०, भूमिका और श्रवणबेलगोला देखो । २. संजैह० ० भा० २ खंड १ ० २०३-२१७ ❤

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