Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Jain Parishad Publishing House Delhi
Publisher: Jain Parishad Publishing House Delhi

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Page 353
________________ ( ३६ ) वीर-संघ का प्रभाव और उपरांत के प्रसिद्ध जैनी राजा भगवान् महावीर की तीर्थ प्रवृत्ति समयकी एक बड़ी आवश्यकता की पूरक थी— लोकसमाज धर्म-विज्ञान का सा रूप देखने को लालायित था । भ० महावीर ने उसकी लालसा पूरी की | परिणाम यह हुआ कि वीर - तीर्थ- प्रवर्तन होते ही उसका चमत्कारिक प्रभाव सर्व व्यापक होगया । सत्य-ज्ञानकी पिपासी आत्माओं ने सर्व वर्गों से आकर भगवान् की सुधागिरा का पान करके अपनी आत्मतुष्टि की थी । कविसम्राट् स्व० डॉ० रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शब्दों मे कहे तो उस समय "श्री महावीर - स्वामी ने गम्भीरवाद से इस प्रकार मुक्ति का सन्देश भारतवर्ष को सुनाया कि धर्म केवल सामाजिक रूढ़ि नहीं है, किन्तु वास्तविक सत्य की उपासना धर्म है। बाहरी साम्प्रदायिक क्रियाकाण्ड के पालने से मुक्ति नहीं मिलती, किन्तु वह सत्य-धर्म के स्वरूपमें आश्रय लेने से प्राप्त होती है । धर्म मे मनुष्य - मनुष्य का भेद कोई स्थान नहीं रखता । कहते हुये आश्चर्य होता है कि महावीरजी की इस शिक्षा ने समाज के हृदय में बैठी हुई भेदभावना को बहुत शीघ्र नष्ट कर दिया और सारे देश को अपने वश में कर लिया !" I क्षत्री, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र आर्य, अनार्य - विद्वान्, श्रीमान्रंक राव, पशु-पक्षी, सभी भ० महावीर की शरण आये । सबने सच्चे सुख को स्वरूप पहचाना और सबको उसका भान हुआ । शायद इसी कारण कहीं २ जैनधर्म को वर्ण व्यवस्था का लोपक कहा जाता है, परन्तु यह मिथ्या है । भ० महावीर ने इतर वर्णों के प्रति जो अत्याचार किया जाता था, उसे मिटा दिया था - उन्हें भी मानवी अधिकार दिये थे और जनतामे उनका

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