Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Jain Parishad Publishing House Delhi
Publisher: Jain Parishad Publishing House Delhi

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Page 335
________________ (३४) भ० महावीर और भारतीय दर्शन । "Yea! His ( Jina Mahavira's ) religion is only true one upon earth, -the primitive faith of all mankind." --Rev. J. A. Dubois. तत्वरूपेन धर्म-सिद्धान्त के दो रूप नहीं हो सकते- वस्तु का स्वभाव ( Nature ) बदलता नहीं है। वाह्य कारणों और सम्बन्धों की अपेक्षा उसका प्रतिभाष अन्यथा होना सम्भव है, परन्तु यह अल्पज्ञता का दोष है । इस हाष्टिदोष के कारण ही लोक मे अनेक मत-मतान्तर दिखते है। भ० महावीर ने उनके समन्वय के लिये अनेकान्त सिद्धान्त प्ररूपा है। __ कहीं-कहीं यह मत फैला हुआ है कि समस्त भारतीय दर्शन वेदों से निकले है, किन्तु यह मत निर्धान्त नहीं है । जैनदर्शन तो वेदों से भी प्राचीन होना सम्भव है, क्योंकि उसमे अणुसिद्धान्त ( Atomic Theory ) और कर्मसिद्धान्त का वर्णन मौलिक और अति प्राचीन ( Primitive) है । कर्म सिद्धान्त मे व्यवहृत पारिभाषिक शब्द ( Technical Terms) जैसे आश्रव-बंध-संवर-निर्जरादि जैनदर्शन में ही शब्दार्थ मे व्यवहृत हुये मिलते हैं-अन्यत्र उनका सद्भाव नहीं है ।२ आवागमन सिद्धान्त की मौलिकता कर्मसिद्धान्त पर अवलम्बित है-वेदों में आवागमन सिद्धान्त मान्य है, परन्तु उनमे कर्म सिद्धान्त नगण्य है। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि जैनदर्शन का उद्भव वेदों से हुआ है, अथवा जैनधर्म वैदिक धर्म की शाखा है । वैदिकधर्म 1. ERE, Vol. II pp. 199-200 २. ईसाइक्लोपेडिया दि रिलीजन एट ईथिक्स, भा० ०५० ४७२ - -

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