Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Jain Parishad Publishing House Delhi
Publisher: Jain Parishad Publishing House Delhi

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Page 324
________________ (३०४) वान थे, उनका वाल बांका नहीं हुआ। प्रत्यत यह घटना उनके वैराग्य का कारण वनी-उन्होंने राज्य को तिलाञ्जलि दी और तपस्या करके मुक्त हुये। दक्षिण भारतके लोग अपने इस पहले सम्राट का आदर विशेष करते हैं। उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में बाहुबलि की वृहकाय मूर्तियाँ एक नहीं, कई हैं। श्रवण वेल्गोल ( मैसूर ) की मूर्ति विश्वविख्यात् हैं। ऋषभदेव ने धर्मोपदेश देकर कैलाशपर्वत से मोक्षलक्ष्मी पाई थी। हिन्दू शास्त्रों में ऋपभदेव को आठवॉ अवतार लिखा है। लिपिकौशल और ब्रह्मविद्या के उद्भावनके कारण ही हिन्दुओं ने उनकी गिनती अवतारों में की, प्रतीत होती है। ब्रह्मविद्या और ब्राह्मी लिपि ऋषभदेव से ही लोक को मिली-मानव संस्कृति के सुरक्षण के ये अपूर्व साधन थे। 'भागवत' में लिखा है कि 'जन्म लेते ही ऋषभदेव के अग में सत्र भगवत लक्षण झलकते, थे। सर्वत्र समता, उपशम, वैराग्य, ऐश्वर्य और महैश्वर्य से उनका प्रभाव बढ़ा था । वह स्वयं तेज, प्रभाव, शक्ति, उत्साह कान्ति और यश प्रभति गुण से सर्वप्रधान बने थे । ऋषभदेव ने अपने ज्येष्ठपत्र भरत को राज सौंप परमहस धर्म सीखने के लिये ससार त्याग किया था। उन्होंने बताया था कि 'इन्द्रिय की तृप्ति ही पाप है। कर्म स्वभाव मन ही शरीर के वन्ध का कारण वन जाता है। स्त्री-पुरुष मिलने से परस्पर के प्रति एक प्रकार का प्रेमाकर्षण होता है। उसी आकर्षण से महामोह का जन्म है। किन्तु उस आकर्षण के टलने और मन के निवृत्ति पथ पर चलने से संसार का अहङ्कार जाता तथा मानव परमपद पाता है। 'भागवत' में लिखते हैं कि ऋषभदेव स्वयं भगवान् और कैवल्यपति ठहरते हैं। योगचर्या उनका आचरण और प्रानन्द उनका स्वरूप है। (१४,५,६ अ०) २ हिन्दी विश्व कोष, मा. ३ १० ४१४ -

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