Book Title: Bankidasri Khyat
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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२०८०-२०९२]
वैरागियां वातां
[ १७३
२०८०. चितोड माथै रावत भीमसिंघजी जद आ आगे समीचा खेडारा सध्यागिरिजी
मनीजता ।
वैरागी
२०८१. पूरबमे मकसूदाबाद चद्रकाणै रामावतारा वडा असतळ है. दोय से वैरागी सासता रहै, वडा सदावर्त दिरीज है ।
२०८२ पूरबमे पढै वैरागी टकसाळी कहावै, अपढे अडबगी कहावे ।
२०८३. वरघमान, अरणघटा आ दोना ठिकाणा नीबावतारा वडा असतळ है, वडा सदावर्त दिजै है |
२०८४. झालारो वाकानेर जठे कूबावतारो ठाकुरदुवारो है ।
२०८५. कबीर सवत पनरासैमे हुवो. दादू पहला सौ वरसा पातसाह सिकदरनू परचो दियो सिद्धपुरादिक ठिकाणा नेमीस्वर विहारादिक जिन-मंदिर सप्रति कराया गजधर, अस्वधर, नरधर मडित जोतिसिया अरज किवी - आपरी आयु सौ वरसरी है सौ वरसरा छत्तीस हजार दिन हुवा छत्तीस हजार जिन - मंदिर सप्रति कराया मातारा उपदेससू आपरी ऊमररा दिना जिता जिन-मदिर कराया. जुमलै सवा लाख जिन-मंदिर कराया राजा सप्रति नवासी हजार जिन-मदिर जीर्णोद्धार करायो सगती राजा परमार कलो भरत क्षेत्र राती क्षेत्र जीतो सिंघ सोवीर देसरो राजा उदई नाम सो साधू वो जैनी ।
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जैन साधु
२०८६ हीरविजय सूरि तपगछमें श्रीपूज, जिनचद्रसूरि खरतरगछमे श्रीपूज, अक समैमें हुवा अकबरनू परचा दिया |
२०८७ विद्या खरतरारै विसेस, धन तपारै विसेस |
२०८८ तपागछमें तेरै बैसणा है, खरतरगछमें इग्यारै बैसणा है ।
२०८९ विजयदेवसूरिरा वसरो श्रीपूज जिणरा जती तपामे घणा है उण पछे विजयाणद सूरिरा वसरा श्रीपूजरै जती घणा है ।
२०९० तपगछरो जती जानविजै महाराज अजीतसिंघजीरो विद्यागुर ।
२०९१ ग्यानविजै तपगछरो जती महाराज अजीतसिंघजी रे विद्यागुरू पळासणी पटै हुती. उणरै सारा चेला कपूत हुवा ।
- २०९२. ग्यानविजै अजीतसिंघरो गुरू, जिणरो चेलो वीरमविजै, घरमे त्रिया घाली ही उणरी बेटी फळोधीरा मथेण श्रीचंदनू परणायी ।

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