Book Title: Bankidasri Khyat
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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१६८ ]
बाकीदासरी ख्यात
[ २४२३-२४३४
२४२३ फरासीस मरियमनू माने, अगरेज ईसानू मान फरासीस कहै जमीसू आछी वसत प्रगट हुई उण वसतरी तारीफ नही, जमीरी तारीफ है ।
२४२४ अगरेज कहें सीपसू मोती प्रगट हुवै सीपनू चीर मोती लोक लियै तैरी ऊपर काड्या पवन ऊपर है इणनू पायदार मत जाणो मास खाणो ईसे कितावमे कह्यो है नही नै थे सरब जतुआरो मास खावो सो क्यो ? ओ प्रश्न कियो अगरेज उतर दियो - कासमीरियारै धरमरी कितावामें त्रियारे माथै पाग बाधणी न कही है, पिण कासमीरमे सरदी बहोत, इण कारणसू प्रथम अक औरत पाग बाधी, पछै देखादेखीसू सारी कासमीरणिया पाग वाधी, हर्मं देसातरमे रहै जिकेही कासमीरणिया पाग वाधै है, परपरा ठेरायी, यू फिरगमे सरदी बहोत जिणसू हकीमा मास खाणो अगीकार कियो, अब देसातरमे ही फिरगी मास खावै है ।
२४२५ अगरेज अक अजमेर छावणी हुतो व्यापारी सो महा झूठो हो अक चाकूरै मोलरा पचास रुपिया कहतो दूजा चाकुवा जिसा उणरै चाकू हुता ।
२४२६ अक कुत्तारा मोलरा हजार रुपिया करतो ओ अगरेज. दो सै रुपिया तो घणा जगा धामिया हुता ।
२४२७ जैपुर अगरेज रहतो असटरजी जिणगे अक हाथ टीपूरी राडमं गोळासू वढ गयो हो ।
२४२८. अगरेज कहै - छोटा मछनू मोटा मछ गिळ जावै, छोटा मछन् क्या सुख हुवा | २४२६ फिरगमें डूक पदसू वडो पद किंगरी है ।
२४३०. तुरमनामो अगरेजारे वाजो हुवै ।
२४३१. वाजा जितरा फिरगमें इता वाजा और विलायत में नही ।
२४३२ अगरेज हुडीनू बिल है ।
२४३३ अगरेजांरं वीवी मेम साहब कहावै ।
२४३४. फिरगण बीबी मुतसद्दी अगरेजनू अगीकार न करें, जगी अगरेजनू अगीकार करै ।

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