Book Title: Bankidasri Khyat
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 229
________________ २७१७-२७४१ ] फुटकर वातां २७१७ नेक सिरदार ज्यानू लाजम है आप जिसा आदमी कनै राखे । २७१८. राजा पातसाह कनै खुसामद गोय अवस्य रहै, आ कनासू खुसामदगोय दूर होणरो उपाय ही नही - अबुलफजल कहै । २७१६ मालिकनू लाजिम है चाकर चाकरीसे वेपरवाह होय जाय इत्तो चाकरांनू न देणो । २७२२ वित्रादीव व्यसनी होय ज्यासू दामोपाय करणो । २७२३. भय उपजाय भेद उपाय करणो । २७२४ रणमाल सो राजासू रूसै । 2 २७२० कुलीन, क्रितग्य, साधु, कार्यार्थीसू सामोपाय करणो । २७२१ नृपरो भ्रत्य हुवै, बाघव हुवै, अत पुरचारी सेनापति हुवै वो जिणसू दामोपाय करणो । [ २१५ २७३०. अकसौ वरस जीवै सो बाणूं क्रोड सास लेवें । २७३१ गीतायां 'पडिता समदर्शिन' न तु 'सम-वर्त्तिन' । राजा सोरणमाल विधूस ! २७२५ नीत - सास्त्ररो रहस्य अंक पादमे कह्यो - लाभादल्पतरो व्यय । २७२६ दुनिया मकररूप है मकरसू वस होती है । २७२७ तू बिना वतळाया सभामे बोल है सो दातवसोलंसू सुखन मोतीनू फोर्ड है । २७२८ ईखरा करसण सिवाय करसण नही, हाथरा वणज सिवाय वणज नही । २७२६. सुदर तो दाता नही, दाता तो नहिं सूर । सैद फतामें तीन गुण, सुंदर, दाता सूर ॥ २७३२ मुरगी आण, मुरगा खाव । २७३३ मीर बहर मुहाणो नै माछी माही फरोस - अं नांव कीररा सिंघमें । २७३४ लसणियारो नाव अनुलहीर है, अनुलहूर नही । २७३५. सिकम पेटनूं कहें फारसी । २७३६ खुर्द छोटा है, कला वडानू है । २७३७ खिलवत गोसे वैसणो । २७३८ जिलवत चोर्ड वैसणो । २७३६ निक्कार धिक्कार अक अरथ है । २७४० देवदत्तस्य गुरो कुल देवदत्तगुरु कुलम् । I २७४१ पाणीपतरा मारगमें अक सिपाह राहजनारै हाथ मारियो गयो । सो लारला वरसा बोलतो - अ सिपाह सिरोही तलवार मत राखज्यो, राखै तो दोय राख इणनू सिरोही तरवार दगो दियो जाणीजे है ।

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