Book Title: Bankidasri Khyat
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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२१४ ]
वांकीदासरी ख्यात
उण कह्यो - आलैकम, वजीर को - आधे फकीर ।
पातसाह !
इण को - कहो, वजीर |
काजी कह्यो - अधे राजी ! उण कह्यो - काजी |
[ २७००-२७१६
२७०० थाढो पाणी पीनै खुदारी सुकरगुजारी न करें जिणनू परलोकमे खुदा सजा दे ।
२७०१ पोसाक, धन, पुत्र, त्रिया दुनिया नही है, खुदानू न जाणनो आ दुनिया है । २७०२ वलकी घोडै न चढणो, वासतो न पहरणो, मैदारी रोटी न खाणी, जवन कह तीन चीजा अ अगीकार किया वदो मौत वीसर जावे ।
२७०३ सूरज यू न कहै मै सूरज नू जगत उणनू सूरज कहिनै वादै है | २७०४. आपमे दूसण हुवै सो दूसण औरमे काढिया बदो निरदूसण हुवै नही । २७०५ तू वडाई न पावै जित्तं वडांरी ठोड वैस मत ।
२७०६. उठ मत जो उठने चाले तो सनै सर्ने चाल । अक पग हेटै हजार जीव जा है ।
२७०७ वाकरो कहै मै काटा खाधा जिणरो गळो करीजै है, सदा खीर खाड खावे ज्यारो काई हाल होसी ?
२७०८ न दखल होहिंगा विच वहिस्त वहिस्त के दयूस |
२७०९ जहान तव कामो फलक यार बाद जहां आफरीन त निगाह दार वाद । २७१०. हकीम सिकदरनू कहै गुपत्दान है, असमानसू आवै जिका आफत गुपत- दानरा पुण्य प्रभावात मिटै ।
२७११- गुपतदानसू खुदा प्रसन होय ।
२७१२ स्त्र वस रकपण ही भलो, नहि पर बस रगरोळ । वर पोतानी पातळी, नही परायो घोळ |
२७१३. सोगात पत्र नेलणो, जाय मिलणो, तारीफ करणी, मदत करणी प्रगट मंत्री ।
२७१४ दिलसू भलो चाहिवो, दिलरी प्रीत - गुप्त मैत्री ।
२७१५. आपरो नही जिणनू आपरो मित्र जाणनो आ नादानगी है. कुळक्षयकार कुळागार कहावै ।
२७१६ वहादुरी, सखावत, आदली - अ तीन गुण अवस्य पातसाहमे चाहिजै |

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