Book Title: Atma Sambodhan
Author(s): Manohar Maharaj
Publisher: Sahajanand Satsang Seva Samiti

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Page 14
________________ [ ७ ] पदार्थ में जो आत्मीय बुद्धि है वह दुख का कारण है" जब हमने रोग का निदान ही गलत समझा हुआ है तो उसका उपाय किस प्रकार ठीक हो सकता है । यह वाक्य हमको स्पष्टतया बतला रहा है दुख का मूल कारण क्या है ? बड़े २ धार्मिक ग्रन्थ भी तो इसी उद्देश्य को लेकर रचे गये हैं । 1 पुत्र मरण हुआ । हम सिर पटकते २ पागल हो जाते हैं । स्त्री वियोग हुआ मानो हमारा जीवन ही शून्य हो गया । घन नष्ट हुआ मानो सर्वस्व नष्ट हो गया । यह है हमारी धारणा जिसके कारण हम दुखी हो रहे हैं। कितने सुन्दर और सरल शब्दों में हमारे योग्य लेखक महोदय इस दुख से छुटकारा पाने का उपाय बतलाते हैं। वह लिखते हैं "वियुक्त [ वस्तु के संयोग होने का नियम नहीं, पर संयुक्त वस्तु का वियोग नियम से होता है" । हम अपने जीवन में इन विचारों को उतार तो लें फिर हम कैसे सुखो नहीं होंगे सोच नहीं सकते । सकता है "दान देकर भी प्रतिष्ठा का लोभ बढ़ाया जा कितना कल्याणकारी है यह वाक्य | हम दान देते हैं ठीक है । परन्तु यदि दान देकर भी हमारी यही भावना रही कि हमारा यश हो, हमारी कीर्ति हो, चार आदमियों में हमारा नाम हो तो उस दान से कोई लाभ नहीं है । दान देने का तात्पर्य तो

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