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[ ८ ] लोभ कपाय का अन्त करना है परन्तु यश की इच्छा रखने से तो लोभ कपाय को और भी उत्तेजन मिला, फिर ऐसे दान से तो कोई लाभ नहीं। आत्मा पर लक्ष्य रखने वाली कल्पनायें तो बहुसंख्यक हैं जिनसे आत्मा को तत्वपथ पर पहुंचने का साधन मिलता, यथा- "तुम तो अनादि अनंत हो किसी एक पर्याय रूप नहीं हो, जब इस पर्याय रूप ही तुम नहीं हो तब इस पर्याय के व्यवहार में क्या रुचि करना” ? “किसी भी परिस्थिति में होओ आत्मा के एकाकीपन को जानकर प्रसन्न रहो"।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे पूज्य लेखक महोदय ने कितनी सरल भापा मे धर्म के ऊंचे २ सिद्धान्तों का दिग्दर्शन कराया है अपनी इन छोटी २ कल्पनाओं में । पूर्वाचार्यों के महान २ ग्रन्थ तो संस्कृत भाषा में होने के कारण सर्व साधारण उनसे अपना अत्माकल्याण करने से वंचित रहता है, किन्तु हमारे लेखक महोदय ने अपने मन में उठे विचारों का संकलन इस ग्रन्थ में इतनी सरल भाषा में किया है जिसको पढ़कर प्रत्येक जन- बाल हो, युवा हो, वृद्ध हो, किवा स्त्री हो-अपनी आत्मा का कल्याण कर सकता है और मोक्ष का उपाय पा कता है जो कि जीव मात्र का ध्येय होना चाहिये।
प्रथम संस्करण में ५०० कल्पनाए छपी थी और वह जैसे खमय २ पर विचार हृदय में आये उसी क्रम से संकलित कर दिये गये थे। परन्तु अब समाज के विशेष आग्रह से उनका