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लेखक महोदय उच्चकोटि के विद्वान, अपूर्व लेखक, प्रभावशाली वक्ता, शान्ति की साक्षात मूति ही नहीं, अपितु संसार, शरीर और भोगों से वैरागी और आदर्श त्यागी भी हैं । यह छोटी सी श्रायु और यह विशाल ज्ञान बड़ा आश्चर्य होता है। उनकी मनोहर वाणी में तो एक प्रकार का नामरा है । एक बार जिसको श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त हो गया वह मत्र मुग्ध सा हो जाता है। उनका दिग्दर्शन कराने के लिये उनके पूज्य गुरुवर्य पूज्य श्री १०५ क्षल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी न्ययाचाय द्वारा उनकी ३७ वीं वर्ष गाँठ (कार्तिक बदी १० सं० २००८) पर प्राप्त हुआ पत्र ही पर्याप्त है। पूज्य गुरुवर्य जी लिखते हैं "श्रीयुन मनोहर जी मनोहर ही हैं । यह बहुत प्रतिभाशाली व्यक्ति है। इसकी धारणा शक्ति बहुत ही उत्तम है । यह एक बार ही में धारणा कर लेता है। जब यह अष्टसहस्त्री, प्रमेय कमल-मार्तण्ड, जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड को पढ़ता था एक घन्टे मे याद कर लेता था । हम से पूछो तो यह निकट भव्य है । इसका नाम तो परमेष्ठी मंत्र में लिया जावेगा। . इस ग्रन्थ में पूज्य लेखक महोदय के अपने मन में उठे ' विचारों का संकलन बहुत ही सुन्दर ढंग से किया है । कल्पनायें
छोटी २ अवश्य हैं परन्तु भाव बहुत ऊचे २ भरे हैं। ऐसा प्रतीत होता है 'गागर में सागर' ही है। एक स्थल पर लेखक महोदय लिखते है "पर पदार्थ दुख का कारण नहीं, किन्तु पर