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[इसके पश्चात् आपने जबलपुर में पाठी, फरवरी सन् १६४८ ई० में बरवासागर में जनवमों, और दिसम्बर सन् । १६४८ ई० में आगरा में, दशम प्रतिमा' अपने गुरु धूज्य ओ. महामणी जी के समक्ष ली।. चुल्लक वर्णीजी:
परिणामों के चढ़ने में क्या देर लगती है। परिणाम और वैराग्यमय हुये । आपको आहार के लिये लेजाने के लिये श्रावकों में, प्रायः प्रतिदिन विसंवाद हो जार्या करता था। कोई कहता था मैंने पहले कहा, कोई कहता था मैंने । सरल हृदय तो'
आप थे, ही। आप,किसी का. चित्त दुखाना नहीं चाहते थे । उक्त विवाद के कारण ही बद्दुत ही. छोटी सी वय में विक्रम संवत् २००५ में सब के मना करने पर भी आपने श्री हस्तिनागपुर तीर्थ क्षेत्र पर. पूज्य गुरू. महावर्णी नी के समक्ष भैक्ष्यवृति का व्रत ग्रहण किया । अब आप क्षुल्लक वर्णीजी के नाम से प्रसिद्ध हुये। सफल लेखकः
आप व्रती व त्यागी ही नहीं, वरन् उच्च कोटि के विद्वान और लेखक भी है। आपकी लेखन शैली अद्वितीय, मनोहर, सरल और हृदय तक पहुंचने वाली है।। १४ वर्ष की अवस्था में ही आपने 'शौक-शास्त्र' नाम का ग्रन्थ संस्कृत भाषा में बनाया जिसमें रेल की सवारी, खेल कूद आदि के ढंग को वर्णन