Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 03 Author(s): Osho Rajnish Publisher: Rebel Publishing House Puna View full book textPage 6
________________ सांसारिक व्यक्ति मैं उसी को कहता हूं जो इस संसार में अपना घर बना रहा है। हमारा शब्द बड़ा प्यारा है। हम सांसारिक को गृहस्थ' कहते हैं। लेकिन तुमने उसका ऊपरी अर्थ ही सुना है। तुमने इतना ही जाना है कि जो घर में रहता है, वह संसारी है। नहीं, घर में तो संन्यासी भी रहते हैं। छप्पर तो उन्हें भी चाहिए पड़ेगा । उस घर को चाहे आश्रम कहो, चाहे उस घर को मंदिर कहो, चाहे स्थानक कहो, मस्जिद कहो-इससे कुछ फर्क पड़ता नहीं। घर तो उन्हें भी चाहिए होगा। नहीं, घर का भेद नहीं है, भेद कहीं गहरे में होगा । संसारी मैं उसको कहता हूं जो इस संसार में घर बना रहा है जो सोचता है, यहां घर बन जाएगा; जो सोचता है कि हम यहां के वासी हो जाएंगे, हम किसी तरह उपाय कर लेंगे। और संन्यासी वही है जिसे यह बात समझ में आ गई है यहां घर बनता ही नहीं । जैसे दो और दो पांच नहीं होते ऐसे उसे बात समझ में आ गई कि यहां घर बनता ही नहीं। तुम बनाओ, गिर- गिर जाता है। यहां जितने घर बनाओ, सभी ताश के पत्तों के घर सिद्ध होते हैं। यहां तुम बनाओ कितने ही घर सब जैसे रेत में बच्चे घर बनाते हैं, ऐसे सिद्ध होते हैं; हवा का झोंका आया नहीं कि गए। ऐसे मौत का झोंका आता है, सब विसर्जित हो जाता है। यहां घर कोई बना नहीं पाया। जिस दिन तुम्हें यह दिखाई पड़ जाता है कि यहां कोई घर बना नहीं पाया, घर बनना इस जगत के नियम में ही नहीं है-उसी दिन तुम्हारे जीवन में संन्यास का पदार्पण होता है। उसी दिन तुम्हारे जीवन में उस दूसरे किनारे की गहन अभीप्सा जागती है। एक पुकार उठती है, एक अहर्निश खिंचाव, एक चुनौती- तुम चल पड़ते हो एक नई यात्रा पर ! जब तुम संसार से परिचित होने का खयाल छोड़ देते हो, तभी परमात्मा से परिचित होने का उपाय शुरू होता है। जब तुम यह भूल ही जाते हो कि दूसरा अपना हो सकता है, तब तुम अपने भीतर उतरने लगते हो, क्योंकि अब और कहीं जगह न रही कि जहां घर बनाएं। बाहर कोई स्थान नहीं - भीतर ही जाना होगा। अष्टावक्र के ये सूत्र उस अंतर्यात्रा के बड़े गहरे पड़ाव स्थल हैं। एक-एक सूत्र को खूब ध्यान से समझना। ये बातें ऐसी नहीं कि तुम बस सुन लो, कि बस ऐसे ही सुन लो। ये बातें ऐसी हैं कि गुनोगे तो ही सुना| ये बातें ऐसी हैं कि ध्यान में उतरेंगी, अकेले कान में नहीं, तो ही पहुंचेंगी तुम तक। तो बहुत मौन से बहुत ध्यान से...... । इन बातो में कुछ मनोरंजन नहीं है। ये बातें तो उन्हीं के लिए हैं जो जान गए कि मनोरंजन मूढ़ता है। ये बातें तो उनके लिए हैं जो प्रौढ़ हो गए हैं; जिनका बचपना गया; अब जो घर नहीं बनाते हैं; अब जो खेल-खिलौने नहीं सजाते; अब जो गुड्डा-गुड्डियों के विवाह नहीं रचाते, अब जिन्हें एक बात की जाग आ गई है कि कुछ करना है, कुछ ऐसा आत्यंतिक कि अपने से परिचय हो जाए। अपने से परिचय हो तो चिंता मिटे । अपने से परिचय हो तो दूसरा किनारा मिले। अपने से परिचय हो तो सबसे परिचय होने का द्वार खुल जाए। जैसे ही कोई व्यक्ति अंतरतम की गहराई में डूबता है, एक दूसरे ही लोक का उदय होता है-ऐसे लोक का, जहां तुम अपनी नाव बांध सकते हो एक ऐसा किनारा, जो तुम्हारा है।Page Navigation
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