Book Title: Arshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti
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________________ जसवन्त की भागवती दीक्षा धर्मात्मा सोभागदे ने बैरागी और धर्मसंस्कारी जसवन्त को शासन के चरणों में अर्पित कर दिया। छोटे से कनोड़ ग्राम में ऐसे उत्तम बालक को दीक्षा देने का कोई महत्त्व नहीं था। अतः श्रीसंघ ने अनुकूल साधन-सामग्रीवाले निकटस्थ पाटण नगर में ही दीक्षा देने का निर्णय लिया। पिता नारायणजी का पाटण शहर के साथ उत्तम सम्बन्ध था। इसलिए हमारे चरित्रनायक पुण्यशाली जसवंतकुमार की भागवती दीक्षा शुभ-मुहूर्त में 'अणहिलपुर' के नाम से प्रसिद्ध पाटण शहर में बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुई। पद्मसिंह की विरक्ति और दीक्षा बचपन से ही बालक जसवन्त के वैराग्यपूर्ण संस्कारों का प्रभाव उसके भाई पद्मसिंह पर पूर्णतया पड़ रहा था, अतः अपने भाई को संयम के पथ पर जाते हुए देखकर जसवन्त के भाई ‘पद्मसिंह' का मन भी वैराग्य के रंग में रंग गया। धर्मात्मा माता-पिता उसमें सहायक बने और पद्मसिंह द्वारा दीक्षा लेने की उत्कट भावना व्यक्त करने पर उसे भी उसी समय दीक्षा दी गई / जनश्रमण परम्परा के नियमानुसार गृहस्थाश्रम का नाम बदलकर जसवन्त का नाम---'जसविजय' 'यशोविजय' और पद्मसिंह का नाम 'पद्मविजय' रखा गया। इन नामों का समस्त जनता ने जयनादों की प्रचण्ड घोषणा के साथ अभिनन्दन किया। जनता का अानन्द अपार था। चतुर्विध श्रीसंघ ने सुगन्धित अक्षतों द्वारा प्राशीर्वाद दिए / दोनों पुत्रों के माता-पिता ने भी अपने दोनों लाड़लों को आशीर्वाद देते हुए हार्दिक बधाई दी। अपनी कोख को प्रकाशित करनेवाले दोनों बालकों को चारित्र के वेश में देखकर उनकी आँखें अश्रु से भीग गईं। घर में उत्पन्न प्रकाश आज से जगत् को प्रकाशित करनेवाले पथ पर प्रस्थान करेंगे, इस विचार से दोनों के हृदय आनन्दविभोर हो गए। संयम-साधना और धार्मिक शिक्षा पहले छोटी दीक्षा दी जाती है, बाद में बड़ी। अतः इस दीक्षा के पश्चात् बड़ी दीक्षा के योग्य तप किया। पूरी योग्यता प्राप्त होने पर उन्हें बड़ी दीक्षा