Book Title: Arshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti
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________________ 22 अथवा पण्डित, साक्षर अथवा निरक्षर, साधु अथवा संसारी सभी व्यक्तियों के ज्ञानार्जन की सुलभता के लिए जैनधर्म की मूलभूत प्राकृत. भाषा में, उस समय की राष्ट्रीय जैसी मानी जानेवाली संस्कृत भाषा में तथा हिन्दी और गुजराती भाषा में विपुल साहित्य का सर्जन किया है। उपाध्यायजी की वाणी सर्वनय-सम्मत मानी जाती है अर्थात् वह सभी नयों की अपेक्षा से गभित है। .. विषय की दृष्टि से देखें तो आपने आगम, तर्क, न्याय, अनेकान्तवाद, तत्त्वज्ञान, साहित्य, अलङ्कार, छन्द, योग, अध्यात्म, प्राचार, चारित्र, उपदेश आदि. अनेक विषयों पर मार्मिक तथा महत्त्वपूर्ण पद्धति से लिखा है / संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो उपाध्यायजी की कृतियों की संख्या 'अनेक' शब्दों से नहीं अपितु 'सैकड़ों' शब्दों से बताई जा सके इतनी है / ये कृतियाँ बहुधा आगमिक और तार्किक दोनों प्रकार की हैं। इनमें कुछ पूर्ण तथा कुछ मपूर्ण दोनों प्रकार की हैं तथा कितनी ही कृतियाँ अनुपलब्ध हैं / स्वयं श्वेताम्वर-परम्परा के होते हुए भी दिगम्बराचार्यकृत ग्रन्थ पर आपने टीका लिखी है / जैन मुनिराज होने पर भी अजैन ग्रन्थों पर टीकाएँ लिख सके हैं। यह आपके सर्वग्राही पाण्डित्य का प्रखर प्रमाण है / शैली की दृष्टि से यदि हम देखते हैं तो आपकी कृतियाँ खण्डनात्मक, प्रतिपादनात्मक और समन्वयात्मक हैं। उपाध्यायजी की कृतियों का पूर्ण योग्यतापूर्वक पूरे परिश्रम के साथ अध्ययन किया जाए, तो जैन आगम अथवा जैनतर्क का सम्पूर्ण ज्ञाता बना जा सकता है। अनेकविध विषयों पर मूल्यवान् अति महत्त्वपूर्ण सैकड़ों कृतियों के सर्जक इस देश में बहुत कम हुए हैं उनमें उपाध्यायजी का निःशङ्क समावेश होता है। ऐसी विरल शक्ति और पुण्यशीलता किसी-किसी के ही भाग्य में लिखी होती है / यह शक्ति वस्तुतः सद्गुरुकृपा, सरस्वती का वरदान तथा अनवरत स्वाध्याय इस त्रिवेणी-सङ्गम की आभारी है। तीव्र स्मृति शक्तिशाली उपाध्याय जी 'अवधानकार' अर्थात् बुद्धि की धारणाशक्ति के चमत्कारी,