Book Title: Arshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti
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________________ के इस सपूत ने जैन धर्म और गुजरात की पुण्यभूमि का जय-जयकार करवाया तथा जैन शासन का अभूतपूर्व गौरव बढ़ाया / आगरा में न्यायशास्त्र का विशिष्ट अध्ययन काशी से विहार करके आप आगरा पधारे और वहाँ चार वर्ष रहकर किसी न्यायाचार्य पण्डित से और भी तलस्पर्शी अभ्यास किया। तर्क के सिद्धान्तों में आप उत्तरोत्तर पारङ्गत होते गए / वहाँ से विहार करके गुजरात के अहमदा: बाद नगर में पधारे। वहाँ श्रीसंघ ने विजयी बनकर आनेवाले इस दिग्गजविद्वान् मुनिराज का भव्य स्वागत किया। अवधान प्रयोग तथा सम्मान उस समम अहदाबाद में महोबतखान नामक सूबा राज्य-कार्य चला रहा था। उसने पूज्य उपाध्याय जी की विद्वत्ता के बारे में सुनकर आपको आमन्त्रित किया / सूबे की प्रार्थना पर आप वहाँ पधारे और 18 अवधानप्रयोग कर दिखाए।' सूबा आपकी स्मरणशक्ति पर मुग्ध हो गया / आपका भव्य सम्मान किया और सर्वत्र जैनशासन के जयजयनाद द्वारा एक अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित किया। इसी प्रकार के अन्य अवधान-प्रयोग भी आपने किये होंगे / इससे भी आपकी तीव्र स्मृति शक्ति का परिचय मिलता है / उपाध्याय पद-प्राप्ति वि० सं० 1718 में श्रीसंघ ने तत्कालीन तपागच्छीय श्रवणसंघ के अग्रणी श्रीदेवसूरिजी ने प्रार्थना की कि 'यशोविजयजी महाराज बहुश्रुत विद्वान् हैं और उपाध्याय पद के योग्य हैं / अतः उन्हें यह पद प्रदान करना चाहिए।' इस प्रार्थना को स्वीकृत करके सं० 1718 में श्रीयशोविजयजी गणी को उपाध्याय पद से विभूषित किया गया। 1. इसी प्रकार श्री यशोविजय जी गणी ने वि० सं० 1677 में जनसंघ के समक्ष आठ बड़े अवधान किए थे, जिसका उल्लेख उनकी हिन्दी रचना 'अध्यात्मगीत' में मिलता है।