Book Title: Aradhana Prakarana
Author(s): Somsen Acharya, Jinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 11
________________ आराधना प्रकरण लिए लिखा गया है। जिसका उद्देश्य है कि व्यक्ति आराधना करके निर्वाण प्राप्त कर सकता है। 'आराधना प्रकरण' नामक इस छोटे से ग्रन्थ में रचनाकार ने अनेक सैद्धान्तिक बिन्दुओं को परिभाषित करने का प्रयास किया है। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूं (नागौर, राज.) ग्रंथागार में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी भाषा की लगभग छः हजार पाण्डुलिपियाँ संग्रहीत हैं। आराधना प्रकरण नामक ग्रंथ की दो प्रतियाँ प्राप्त होती हैं। जिनका चयन सम्पादन-कार्य के लिए किया गया। अ - प्रति श्री सोमसूरिकृत आराधना प्रकरण नामक इस कृति में कुल 70 गाथाएँ हैं। इस कृति की प्राप्ति जैन विश्वभारती लाडनूं के ग्रंथागार में 1566 क्र. पर संग्रहीत है। इस कृति के लिपिकार पं. श्री लाभविजय जी है। यह ग्रंथ कुल सत्रह पृष्ठों में सम्पन्न है। जिसमें कुल नौ पन्ने हैं। ग्रंथ का प्रारम्भ इस प्रकार होता है - ॥अथ ॥ नमः श्री परमात्मने॥ नमिऊण भणइ एवं, भयवंसमउचिअंसमाइससु। तत्तो वागरइ गुरू पज्जंताराह ण एअं॥ (गाथा,1) अर्थात् इस प्रकार (भगवान् महावीर को) प्रणाम कर कहते हैं कि शास्त्रसम्मत (करणीय कार्य का) आदेश दें। तब गुरु इस सम्पूर्ण आराधना (पर्यन्ताराधना) को कहते हैं । तथा अन्तिम गाथा में रचनाकार ने उल्लेख करते हुए कहा है कि यह सम्पूर्ण आराधना उन लोगों को निर्वाण का सुख प्रदान करने वाली है, जो आराधना का सम्यक् रूप से अनुसरण करते हैं - सिरिसोमसूरिरइअं, पजंताराहणं पसमजणणं। जे अणुसरंति सम्मं, लहंति ते सासयं सुक्खं ॥ 70॥ अर्थात् - श्री सोमसूरि द्वारा रचित उत्कृष्ट रूप से कर्मों का शमन करने वाली पर्यन्त (सम्पूर्ण) आराधना का जो सम्यक् रूप से अनुसरण करते हैं, वे शाश्वत सुख अर्थात् निर्वाण को प्राप्त करते हैं। ... प्रस्तुत प्रति में लिपिकार के समय का उल्लेख नहीं है। प्रति के प्रत्येक पृष्ठ पर चार पंक्तियाँ टीका सहित (गुर्जर टीका) अंकित हैं। Jain Education International tional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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