Book Title: Aradhana Prakarana
Author(s): Somsen Acharya, Jinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 10
________________ प्रस्तावना आराधना प्रकरण : एक अध्ययन प्रति- परिचय आधुनिक युग में जिस तरह हाथ से लेखनी के द्वारा कागज पर लिखा जाता है, उसी प्रकार मनुष्य की सभ्यता के प्रारम्भ में और विकासकाल में पत्रों पर, शिलाखण्डों पर, ईट अथवा ताड़पत्रों आदि पर लिखने की परम्परा प्रचलित थी । लेखनकला विकास के सोपानों को तय करती हुई मोमपाटी पर, चमड़े पर, कपड़ों पर, ताड़पत्र एवं भोजपत्र सहित अनेक धातुपत्रों पर भी टंकित होकर गतिशील होती रही। इतिहासकारों ने भी इन आलेखों पर किये गये अनुसंधान को अभिलेख, शिलालेख अथवा ताम्रपत्र आदि का नाम दिया। प्राचीनकाल में इस तरह लेखों के रूप स्मारक, आज्ञापत्र, दानपत्र या प्रशंसा में अभिलेखों के रूप में प्राप्त होते थे । मुद्राओं पर भी अभिलेख अंकित किए हुए प्राप्त होते हैं । इन अभिलेखों के बाद पुस्तकलेखन का क्रम प्रारम्भ होता है, जिसे पाण्डुलिपि कहा जाता है। अंग्रेजी में इन्हें मैन्युस्क्रिप्ट्स कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ 'हस्तलेख' है । यद्यपि हस्तलेख का अर्थ पाण्डुपिलि से भी विस्तृत है, क्योंकि उसमें शिलालेख या ताम्रलेख आदि भी समाविष्ट हो जाते हैं जबकि पाण्डुलिपि का सम्बन्ध ग्रन्थ से ही होता है। इसके विपरीत अंग्रेजी में किसी भी प्रकार के हस्तलेख मैन्युस्क्रिप्ट्स ही कहलाते हैं । प्राकृत भाषा में लिखा हुआ आदि साहित्य शिलालेखों से प्रारम्भ होता है । इससे पूर्व के दस्तावेज आज उपलब्ध नहीं हैं । सम्राट अशोक द्वारा लिखाए गये शिलाभिलेख प्राकृत भाषा के आदि साहित्य के रूप में मान्य हैं। उसके पश्चात् आगम साहित्य, आगमेतर साहित्य, व्याख्या, कथा और विभिन्न विधाओं में लिखा गया साहित्य प्राकृत वाङ्मय को समृद्ध करता है । सूत्रशैली में लिखे जाने के कारण आगम साहित्य जटिल था, इसलिए आचार्यों ने इसका व्याख्या साहित्य लिखना प्रारम्भ किया । निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि और तत्पश्चात् टीका ग्रंथ व्याख्या साहित्य के अंग हैं। टीकाओं का विभिन्न रूपों में प्रचलन देखा गया है । वृत्ति, दीपिका, अवचूरि, टब्बा, प्रकरण ये विविध रूप आगमिक व्याख्या साहित्य में प्राप्त होते हैं । प्रकरण के अन्तर्गत किसी घटना अथवा सिद्धांत विशेष को व्याख्यायित करने के लिए ग्रंथ-रचना का प्रणयन रचनाकार के द्वारा किया जाता है। प्रस्तुत आराधना प्रकरण भी आराधना को व्याख्यायित करने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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