Book Title: Aradhana Prakarana
Author(s): Somsen Acharya, Jinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 56
________________ आराधना प्रकरण > . अन्वय : नाणाविहपावपरायणो वि अवसाणे जीवो (तस्स) पाविऊण सुरत्तं लहइ तं नमुक्कारं मणे सुमरसु। अनुवाद : नाना प्रकार के पापों में अनुरक्त होने पर भी अन्तकाल में जीवपिको प्राप्त (स्मरण) कर देवत्व को प्राप्त कर लेता है, उस नमस्कार महामंत्र को मन में स्मरण करो। *जेण सहाएण गयाणं' परभवे संभवंति भविआणं। मणविंछिअ सुक्खाइं, तं सुमरसु मणे नमुक्कारं ॥ 64॥ अन्वय : जेण सहाएण परभवे गयाणं भविआणं मणवंछिअ सुक्खाइं संभवंति तं ___ नमुक्कारं मणे सुमरसु। अनुवाद : जिसकी सहायता से परभव में भी गये हुए भव्यजीवों को मनवांछित सुखों की प्राप्ति होती है, उस नमस्कार महामंत्र को मन में स्मरण करो। सुलहाउं रमणीउं', सुलहं रज्जं सुरत्तणं सुलहं। इक्कुच्चिअ जो दुलहो, तं सुमरसु मणे नमुक्कारं ॥ 65॥ अन्वय : रमणीउं सुलहाउं, रज्जं सुलहं (च) सुरत्तणं सुलहं (तु) इक्कुच्चिअ जो दुलहं तं नमुक्कारं मणे सुमरसु। अनुवाद : (इस संसार में) सुन्दर स्त्री सुलभ है, राज्य भी सुलभ है और देवत्व भी सुलह हो जाता है, (किन्तु) एक मात्र जो दुर्लभ है, उस नमस्कार महामंत्र को मन में स्मरण करो। लद्धंमि जंमि जीवाण, जायए गोपयं व भवजलही। सिव-सुह-सच्चंकारं, तं सुमरसु मणे नमुक्कारं ॥ 66॥ अन्वय : जंमि लद्वंमि जीवाण गोपयं व सिव-सुह-सच्चंकारं जायए तं नमुक्कारं मणे सुमरसु। अनुवाद : जिस भव में (नमस्कार महामंत्र को) प्राप्त कर लेने पर जीवों के लिए यह संसार-सागर गोपद (गाय का खुर) के बराबर हो जाता हैं। उस शिव, सुख (शुभ) और सत्य स्वरूप नमस्कार महामंत्र को मन में स्मरण * ब प्रति में यह गाथा 65 वीं गाथा के रूप में प्रयुक्त हुई है तथा 65 वीं गाथा 64 गाथांक पर अंकित 1. (ब) गयाण 4. (ब) रणीउं 2. (अ) पराभवं 5. (अ) जों 3. (ब) संभवेई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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