Book Title: Aradhana Prakarana
Author(s): Somsen Acharya, Jinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 58
________________ आराधना प्रकरण . 49 सुक्खं लहंति। अनुवाद : श्रीसोमसूरि द्वारा रचित उत्कृष्ट रूप से कर्मों का शमन करने वाली पर्यन्त (सम्पूर्ण) आराधना को जो सम्यक् रूप से अनुसरण करते हैं, वे शाश्वत सुख अर्थात् निर्वाण को प्राप्त करते हैं। इति श्री आराधना प्रकरणं समाप्त।* लिखितं पं. श्री लाभविजयेन। *(श्री आराधना प्रकरणावचूरिः !! संवत् 1665 वर्षे महोपाध्याय श्री श्री मुनि विजय गणि क्रमकजभमरायमाण पं. प्रेमविजय गणिना लिखितेयमिति भइम्म कुमरगिरिग्रामे शुभं भवतु लेखक पाठकयो-ब प्रति) - अनुवाद : आराधना प्रकरणावचूरि महोपाध्याय मुनि विजयगणि के योग्य चरणों में अनुरक्त पं. प्रेमविजयगणि द्वारा विक्रम संवत् 1665 में शुक्ल पक्ष की दशमी रविवार को कुमारगिरि नामक नगर में लिखी गई, जो लेखक और पाठक के लिए कल्याणकारी हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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