Book Title: Aradhana Prakarana
Author(s): Somsen Acharya, Jinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 38
________________ आराधना प्रकरण 29 पैशुन्यम् - पेसुन्नं (गाथा, 29) शरणम् - सरणं (गाथा, 33) सुकृतम् - सुकयं (गाथा, 51) 7. श, ष और स के स्थान पर केवल स का प्रयोग। यथा - श के स्थान पर स - निःशंकिता - निस्संकियाइं (गाथा, 9) विनाशम् - विणासं (गाथा, 11) शक्तियेन् - सत्तिए (गाथा, 24) शरणम् - सरणं (गाथा, 31) परिशुद्धं परिसुद्धं (गाथा, 39) शमित - समिआ (गाथा, 41) शीलम् - सीलं (गाथा, 58) ष के स्थान पर स - भाषितम् - भासिअं (गाथा, 19) कषाय - कसाया (गाथा, 38) वृषभ - वसहा (गाथा, 41) पोषितम् - पोसिअं (गाथा, 5) 8. खघथधभाम (8/1/187) सूत्र के अनुसार ख, घ, थ, ध, भ, का 'ह' हो जाता है। यथा - ख, घ, थ, ध, भ, के स्थान पर 'ह' - क्रोधलोभ - कोहलोह मिथुनं - मेहुणं (गाथा, 21) प्रमुखं _ - पमुहं (गाथा, 22) माधुकरीवृत्ति -- महुअरिवित्ति (गाथा, 39) सुलभः - सुलहो (गाथा, 60) भवजलधि -- भवजलही (गाथा, 66) आराधित्वा - आराहिऊण (गाथा, 69) 9. 'टोड:' सूत्र के माध्यम से कहीं-कहीं 'ट' के स्थान पर 'ड' की प्रवृत्ति भी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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