Book Title: Aradhana Prakarana
Author(s): Somsen Acharya, Jinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 43
________________ आराधना प्रकरण अन्वय : जं कहवि जिणंदमंदिराइसु आसयणं कुणंतो सत्तिए निसिद्धो न तस्स मिच्छामि दुक्कडं। अनुवाद : जिस प्रकार से जिनमन्दिर आदि में असातना करते हुए शस्त्रों (हिंसा) का निषेध नहीं किया हो, उसके लिए क्षमा याचना करता हूँ। जं पंचहिं समिइहिं' तीहिगुत्तीहिं संगयं सययं। परिपालिअं न चरण मिच्छामि दुक्कडं तस्स॥13॥ अन्वय : पंचहिं समिईहिं तीहि गुत्तीहिं संगयं चरणं जं न परिपालिअंतस्स मिच्छामि दुक्कडं। अनुवाद : पांच समिति एवं तीन गुप्ति आदि से युक्त अपने आचरण का जो मैंने निरन्तर पालन नहीं किया, उसके लिए क्षमा याचना करता हूँ। एगिदिआण जंकहवि, पुढवी जलजलणमारुअतरू णं। जीवाण वहो विहिउं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥14॥ अन्वय : जं कहवि पुढवी-जल-जलण-मारुअ-तरू णं एगिंदिआण जीवाण वहो विहिउं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। अनुवाद : जब कभी भी पृथ्वी, जल, तेज, वायु एवं वनस्पति कायिक एकेन्द्रिय जीवों का वध (मेरे द्वारा) हुआ हो, उसके लिए क्षमा याचना करता हूँ। किमिसंखसुत्तिपूअर, जलोअगंडोलयालसप्पमुहा। बेइंदिया हया तस्स जं मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥15॥ अन्वय : किमि, संख, सुत्ति, पूअर, जलोअ, गंडोलयालसप्पमुहा बेइंदिया जं हया - तस्स मिच्छामि दुक्कडं। अनुवाद : कृमि, शंख, सीपी, जल-जन्तु (पूतर), जोंक, जलकृमि विशेष, वर्षा ऋतु में सॉप सरीखा लाल रंग का उत्पन्न लम्बा जन्तु आदि प्रमुख द्विइन्द्रिय जीव, जो (मेरे द्वारा) नष्ट हुए, उसके लिए क्षमा याचना करता गद्दहा कुंथुजूआ, मंकुण'-मकोड-कीडिआई" या। तेइंदिया' हया जं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ॥16॥ 1. (अ) समिएहिं (ब) समिईहिं 2. (अ ब) तीहिं गुत्तीहिं 3. (ब) चरंणं 4. (अ) संपुत्तिपुअर 5. (ब) बेंदिआ 6. (अ, ब) गद्दह 7. (ब) मंकुड 8. (अ) कीडियाइ. 9. (ब) तेंदिआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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