Book Title: Aradhana Prakarana
Author(s): Somsen Acharya, Jinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 45
________________ 36 आराधना प्रकरण अन्वय : कवडवावडेणं जं मए परं वंचिऊण थोवंपि अदिन्नं धणं गिहिअंतं निंदेतं च गरिहामि। अनुवाद : कपट से व्यापृत होकर मेरे द्वारा वंचना करके थोड़ा भी बिना दिए हुए धन का ग्रहण (चोरी) किया गया, उसके लिए (मैं) निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ। दिव्वं व माणुसंवा, तिरिच्छं' वा सरागहिअएणं। जं मेहुणमायरिअं तं निंदेतं च गरिहामि॥21॥ अन्वय : सरागहिअएणं दिव्वं व माणुसं वा, तिरिच्छं जं मेहुणं आयरिअं तं निंदेतं __च गरिहामि। अनुवाद : सराग हृदय से देव सम्बन्धी, मनुष्य सम्बन्धी अथवा तिर्यग् सम्बन्धी मैथुन का आचरण किया, उसकी (मैं) निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ। जं धणधन्नसुवनं, पमुहंमि परिग्गहे नव विहंमि। विहिउँ ममत्तभावो, तं निंदेत च गरिहामि ॥22॥ अन्वय : जं धणधन्नसुवन्नं, पमुहंमि नव विहंमि परिग्गहे विहिउं ममत्तभावो तं निदेतं च गरिहामि। अनुवाद : जो धनधान्य सुवर्णादि प्रमुख नौ प्रकार के परिग्रहों में लिप्त होकर (मैंने) ममत्व का पालन (भाव) किया, उसकी (मैं) निंदा और गर्दा करता हूँ। जंराइभोअणवेरमणाई, नियमेसु विविहरूवेसु। खलिअं मह संजायं, तं निंदेतं च गरिहामि॥23॥ अन्वय : राइभोअणवेरमणाई विविहरूवेसु नियमेसु जं खलिअं मह संजायं तं निंदेतं ___ च गरिहामि। अनुवाद : रात्रि भोजन विरमणादि विविध प्रकार के नियमों में जो स्खलन मेरे द्वारा हुआ है, उसकी (मैं) निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ। बाहिरमभिंतरिअं तवं दुवालसविहं जिणुद्दिटुं। जं सत्तिए' न कयं, तं निंदेतं च गरिहामि ।। 24॥ अन्वय : जिणुद्दिटुं बाहिरमभिंतरिअं दुवालसविहं तवं सत्तिए जं न कयं तं निंदेतं 1. (अ) तेरिच्छं 2. (अ) मिहुण 3. (अ) परिग्गहं 4.(ब) विहेवि 5. (ब) विहिउ6 . (अ) "तरियं 7.(ब) सत्तीए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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